Rudrangshu Mukherjee
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“सुरुवातीच्या जडणघडणीच्या काळातील आणखी एक मुद्दा इथे नोंदवणं गरजेचं आहे. तसं करताना सनावळीला धरून सुरू असलेल्या या कथनाची चौकट काहीशी मोडली जाईल, पण तसं करणं भाग आहे. सुभाषचंद्र प्रेसिडन्सी कॉलेजचे विद्यार्थी राहिलेले नव्हते तेव्हा (याची कारणं आपण पुढे पाहणार आहोत), म्हणजे, १९१७च्या मध्यात, ते भारतीय ‘प्रांतीय सेनेत’ (टेरिटोरियल आर्मीत) दाखल झाले. भारतीय संरक्षण दलांची ही एक विद्यापीठीय शाखा होती.”
― Nehru Va Bose: समांतर जीवनप्रवास
― Nehru Va Bose: समांतर जीवनप्रवास
“इससे अवश्य ही सहायता मिलेगी। मुझे लगता है कि आपके सभापति बनने से इसे बहुत लाभ होगा।’’201 करीब एक महीने बाद उन्होंने गांधी से उन्हें अध्यक्ष न बनाने का अनुरोध करते हुए पत्र लिखा था। गांधी ने भी उन्हें आश्वासन दिया था कि वे उनके नाम के लिए अनावश्यक दबाव नहीं बनाएँगे।202 इसके बाद उन्होंने यह भी कहा कि इस समय यह किसी के लिए एक बुरा कार्य ही होगा।203 यहाँ तक कि मोतीलाल, जो कि अपने बेटे को कांग्रेस अध्यक्ष के रूप में देखना चाहते थे, उन्होंने भी महसूस किया कि जवाहरलाल की इच्छा के विरुद्ध उन्हें इसके लिए बाध्य करना उनके और देश-हित में उचित नहीं होगा।204 परंतु गांधी इस कार्य में लगे रहे और जवाहरलाल सितंबर 1929 में कांग्रेस के अध्यक्ष चुन लिये गए। गांधी ने ‘यंग इंडिया’ में एक लेख लिखा कि जवाहरलाल का अध्यक्ष बनना गांधी को अध्यक्ष बनाने जैसा ही था—जवाहरलाल एक तरह से गांधी के छद्म अहं के रूप में ही थे।205 उन्हें यह नहीं महसूस हुआ कि इस तरह का कथन जवाहरलाल के लिए सम्मानजनक नहीं था और इससे वे गांधी की छवि के रूप में ही दरशाए गए थे। जवाहरलाल स्वयं भी इस परिणाम से प्रसन्न नहीं थे। उन्हें लगता था कि वे किसी के”
― Nehru Banam Subhash: A Historical Perspective on Jawaharlal Nehru and Subhash Chandra Bose by Rudrangshu Mukherjee
― Nehru Banam Subhash: A Historical Perspective on Jawaharlal Nehru and Subhash Chandra Bose by Rudrangshu Mukherjee
“गांधींनीही जवाहरलालकडे आपला नियुक्त राजकीय वारसदार म्हणून पाहिलं आणि सुभाषचंद्र हा काहीसा बंडखोर व मार्गभ्रष्ट मुलगा असल्याची गांधींची भूमिका राहिली.”
― Nehru Va Bose: समांतर जीवनप्रवास
― Nehru Va Bose: समांतर जीवनप्रवास
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