Rajendra Prasad Singh
Born
India
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“रैदास की नजर में श्रम ही सत्य है। श्रम ही ईश्वर है। स्रम को ईसर जानि कै, जो पूजै दिन रैन। रैदास तिन्हहिं संसार मंह, सदा मिलहिं सुख चैन।।”
― छिपाए रैदास बाहर आए
― छिपाए रैदास बाहर आए
“कृष्ण रहीम राम हरि राघव, जब लौं एक न पेखा। बेद कतेब कुरान पुरानन, सहज एक नहिं देखा।। जोइ - जोइ पूजिइ सोइ - सोइ कांची, सहज भाव सत होई। कह रैदास मैं ताहिं को पूजूं, जाके ठांव नहिं होई॥”
― छिपाए रैदास बाहर आए
― छिपाए रैदास बाहर आए
“बौद्ध साहित्य से वैपुल्यवाद या महायान का विकास हुआ, महायान में मंत्रयान, मंत्रयान से वज्रयान या तांत्रिक बौद्ध धर्म में परिणत हुआ। इसी वज्रयान की प्रक्रिया में नाथ संप्रदाय का विकास हुआ और नाथ संप्रदाय के प्रेरणामूलक तत्वों को ग्रहण कर संत संप्रदाय अवतरित हुआ। यह देखा जा सकता है कि इस विकास की प्रक्रिया में बौद्ध धर्म से लेकर नाथ संप्रदाय तक जो - जो जीवन के तत्व मनोभावों के धरातल पर उभर सके उन सबका समाहार संत संप्रदाय में हुआ। बौद्ध धर्म के शून्यवाद से लेकर नाथ संप्रदाय के योग तक तथा वज्रयान के सिद्धों की 'संधा भाषा' की उलटबाँसियों से लेकर नाथ संप्रदाय की अवधूत भावना तक संतकाव्य में सभी विचार-सरणियाँ पोषित हो सकीं।”
― छिपाए रैदास बाहर आए
― छिपाए रैदास बाहर आए
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