Anand Satyarthi
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“अतीत के बारे में चिन्ता क्यों करते हो? उसको भूल जाओ। अब तुम इस तरह से जीना शुरू करो जैसे तुम्हें जीना आता ही न हो। तुम्हें सिखाने वाला कोई नहीं है और न ही कोई मार्गदर्शन ही तुम्हारे पास है। कोई ऐसी पुस्तक नहीं है जिसमें लिखा हो ऐसा-कैसे किया जाए, वैसा किस तरह करें। तुम जैसे एक द्वीप में अकेले हो। वहां सब कुछ उपलब्ध है। तुम्हारे अंदर बुद्धि है, समझ है, तुम्हारे अंदर सोचने-समझने की शक्ति है। अब तुम अपना जीवन शुरू करो।”
― Osho Pravachan par Aadharit : Jeevan Jeene Ki Kala: ओशो प्रवचनों पर आधारित : जीवन जीने की कला
― Osho Pravachan par Aadharit : Jeevan Jeene Ki Kala: ओशो प्रवचनों पर आधारित : जीवन जीने की कला
“संन्यास का अर्थ है जीवन को एक काम की भांति नहीं वरन् एक खेल की भांति जीना। जीवन नाटक से ज्यादा न रह जाए कि चिंता को जन्म दे सके। दुःख हो या सुख, पीड़ा हो संताप हो, जन्म हो या मृत्यु संन्यास का अर्थ है इतनी समता में जीना (हर स्थिति में) कि भीतर कोई चोट न पहुंचे।”
― Osho Pravachan par Aadharit : Jeevan Jeene Ki Kala: ओशो प्रवचनों पर आधारित : जीवन जीने की कला
― Osho Pravachan par Aadharit : Jeevan Jeene Ki Kala: ओशो प्रवचनों पर आधारित : जीवन जीने की कला
“अभी तो ऐसा है कि बहुत खंड हैं, कुछ कहते कुछ सोचते, कुछ करते, कल कुछ करते, परसों कुछ करने लगते। इधर एक मकान उठाना शुरू किया, फिर आधा छोड़ दिया, फिर दूसरा मकान बनाने लगे। इधर एक कुआं खोदा दो हाथ फिर छोड़ दिया फिर दूसरा कुआं खोदने लगे। ऐसे करते तो तुम बहुत हो लेकिन फल हाथ नहीं आता। फल आने के लिए सातत्य चाहिए।”
― Osho Pravachan par Aadharit : Jeevan Jeene Ki Kala: ओशो प्रवचनों पर आधारित : जीवन जीने की कला
― Osho Pravachan par Aadharit : Jeevan Jeene Ki Kala: ओशो प्रवचनों पर आधारित : जीवन जीने की कला
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