Shashi Vallabh Sharma
Goodreads Author
Member Since
September 2020
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Muktak Shatak
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“मानसरोवर सा मन मेरा तुम हो धवल कमलिनी सी,
छूटी लट छूने को अधरा मानो भँवरी पागल सी,
मधुर निशा में दमक रही हो सूर्य प्रभा के मोती सी,
नमन हो गया है मन मेरा हो तुम दिव्य रमा जैसी।”
― Muktak Shatak
छूटी लट छूने को अधरा मानो भँवरी पागल सी,
मधुर निशा में दमक रही हो सूर्य प्रभा के मोती सी,
नमन हो गया है मन मेरा हो तुम दिव्य रमा जैसी।”
― Muktak Shatak
“ज्ञान साधना की सीपी में तुम मोती बन जाओगी,
सूरज की तुम कनक रश्मियों से आभा पा जाओगी,
जब भी होगा घोर अंधेरा सूरज भी छिप जाएगा,
लेकर चंद्रमणि से रश्मि ज्ञान प्रभा बन जाओगी।”
― Muktak Shatak
सूरज की तुम कनक रश्मियों से आभा पा जाओगी,
जब भी होगा घोर अंधेरा सूरज भी छिप जाएगा,
लेकर चंद्रमणि से रश्मि ज्ञान प्रभा बन जाओगी।”
― Muktak Shatak
“बहन भाई के माथे पर सुखद आशीष देती है,
नेह के बंधनों से संकटों को टाल देती है,
मान-मनुहार के रिश्तों में पावन प्रेम होता है,
बनके माँ की प्रति छाया, वही वरदान देती है।”
― Muktak Shatak
नेह के बंधनों से संकटों को टाल देती है,
मान-मनुहार के रिश्तों में पावन प्रेम होता है,
बनके माँ की प्रति छाया, वही वरदान देती है।”
― Muktak Shatak