Rahul Sankrityayan
Born
in Azamgarh, India
April 09, 1893
Died
April 14, 1963
Genre
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वोल्गा से गंगा
52 editions
—
published
1942
—
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ভবঘুরে শাস্ত্র
by
8 editions
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published
1948
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ஊர்சுற்றிப் புராணம்
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বৌদ্ধ দর্শন
by
7 editions
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published
2011
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মহামানব বুদ্ধ
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published
1956
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दर्शन दिग्दर्शन
2 editions
—
published
1942
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तुम्हारी क्षय
2 editions
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published
1954
—
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তিব্বতে সওয়া বছর
by
4 editions
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published
1934
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সিংহ সেনাপতি
7 editions
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published
1956
—
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কিন্নর দেশে
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“रूढ़ियों को लोग इसलिए मानते हैं, क्योंकि उनके सामने रूढ़ियों को तोड़ने वालों के उदाहरण पर्याप्त मात्रा में नहीं हैं।”
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“बहुतों ने पवित्र, निराकार, अभौतिक, प्लेटोनिक प्रेम की बड़ी-बड़ी महिमा गाई है और समझाने की कोशिश की है कि स्त्री-पुरुष का प्रेम सात्विक तल पर ही सीमित रह सकता है। लेकिन यह व्याख्या आत्म-सम्मोहन और परवंचना से अधिक महत्व नहीं रखती। यदि कोई यह कहे कि ऋण और धन विद्युत- तरंग मिलकर प्रज्वलित नहीं होंगे, तो यह मानने की बात है।”
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“असल बात तो यह है कि मज़हब तो सिखाता है आपस में बैर रखना। भाई को है सिखाता भाई का खून पीना। हिन्दुस्तानियों की एकता मज़हब के मेल पर नहीं होगी, बल्कि मज़हबों की चिता पर। कौव्वे को धोकर हंस नहीं बनाया जा सकता। कमली धोकर रंग नहीं चढ़ाया जा सकता। मज़हबों की बीमारी स्वाभाविक है। उसकी मौत को छोड़कर इलाज नहीं।”
― तुम्हारी क्षय
― तुम्हारी क्षय
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Goodreads Librari...: Please combine | 5 | 19 | Apr 20, 2017 04:34AM |