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Radhavallabh Tripathi

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Radhavallabh Tripathi



Average rating: 4.31 · 62 ratings · 14 reviews · 71 distinct worksSimilar authors
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Quotes by Radhavallabh Tripathi  (?)
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“एक बूँद जल कोई चोंच में डाल देता। मेरी मृतप्राय देह में फिर से प्राणों का संचार हो जाता। उस अर्धमूर्च्छा की स्थिति में, मन के नि:संज्ञ और निश्चेष्ट हो जाने पर भी कोई था, जो देह को उस ओर ठेल रहा था, जिधर से जल देवता के नूपुर के निनाद–सा कलहंसों का कलरव आ रहा था। बड़ी दूर से आने के कारण क्षीण होते हुए भी उस स्वर को मेरे कान सुन पा रहे थे। सारसों की अस्फुट क्रैकार भी मैं सुन रहा था। यह जानते हुए भी कि इस जीवन में इस अक्षम अधम देह से घिसट–घिसटकर मैं उतनी दूर कभी भी नहीं चल सकूँगा, कभी नहीं पहुँच सकूँगा उस सरोवर के तट तक, कोई था, जो उस झुलसती मरीचिका में मुझे आगे ठेल रहा था। पैर मेरे उठ नहीं पा रहे थे, पर न केवल पैरों को उठाने का, मैं तो अपने कच्चे पंखों को फड़फड़ाने तक का दुस्साहस कर रहा था। चींटी की गति से मैं बढ़ता बार–बार मूर्च्छित होता, गिरता– पड़ता और हाँफता असहाय प्रकंपित अपने पग उसी ओर बढ़ा रहा था, जिस ओर मेरे अनुमान से सरोवर था। आकाश के बीचोबीच विराजे सूर्यदेव अंगार बरसा रहे थे और नीचे धरती लावे–सी लग रही थी। हे विधाता, तो फिर अब मुझे मृत्यु ही दे दे–अंत में सर्वथा श्रमनिस्सह होकर अत्यंत क्षीण कंठ से मैंने यह गुहार की और फिर मूर्च्छा के घने अँधेरे में डूब गया। संज्ञा आई तो लगा कि किसी विमान में विराजमान हूँ। देवदूत जैसे मुझे चारों ओर से घेरे हुए निरभ्र व्योम में उड़ रहे थे। आँखें मिचमिचाकर देखने और उन्हें पहचानने का प्रयास करने लगा मैं। करुणा का अमृत बरसाते दो नेत्रों से मेरी आँखें टकराईं। ‘यह तपस्वी शुकशावक लगता है गिर पड़ा है उस तरु के कोटर से। हम ले चलते हैं इसको पंपा सरोवर तक।’ उन नेत्रों के नीचे दो किशोर ओठों से झरते कोकिल कलरव को तिरस्कृत करने वाले मधुर स्वर में ये शब्द मैंने सुने। वे देवदूत नहीं, तापस कुमार थे।”
Radhavallabh Tripathi, Kadambari

“अंतिम पड़ाव था सुवर्णपुर, धुर उत्तर में कैलास के निकट। किरातों की निवासस्थली। उसके आगे धरती समाप्त हो जाती है, स्वर्ग की सीमा आरंभ होती है। हिमालय के रजतमय गगन चूमते शिखरों का अनंत विस्तार और उच्छाय नेत्रों को प्रतिहत कर रहा था। असीम का उल्लास पूरी उजास के साथ फैला था। चंद्रापीड अपनी सीमाएँ भूल गया। तय किया–अद्भुत पुष्पों, दुर्लभ वनस्पतियों और विचित्र जीव–जंतुओं से भरे इस प्रदेश में कुछ दिन विश्राम करेगा। हिमालय”
Radhavallabh Tripathi, Kadambari

“आँवलों से लदे वृक्ष की डाल झुकाई। पाँच–छ: बड़े–बड़े गदराए आँवले तोड़कर उसने हथेली पिंजरे के भीतर डाल दी। “बस, एक आमलक मैं चखूँगा।” वैशंपायन ने एक पके आँवले में चोंच गड़ाई। आँवले के मधुर, कषाय, अम्ल और कटु रसों से मिश्रित स्वाद में डूबी जिह्वा से उसने कहा, “अहो, अहो, परम स्वादिष्ट है!”
Radhavallabh Tripathi, Kadambari



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