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Main Wo Shankh Mahashankh

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सुपरिचित कवि अरुण कमल के इस पाँचवें संग्रह की कविताएँ अनेक स्वरों का स्तबक हैं। मूल, सर्वव्याप्त स्वर तो स्वयं कवि का है, लेकिन वह स्वर एकाकी नहीं वरन् शंख महाशंख स्वरों से गठित वृन्द स्वर है।

कोई कवि केवल अपना प्रवक्ता नहीं होता, वैसे तो वह किसी का भी प्रवक्ता नहीं होता; लेकिन उसमें समस्त जन एवं समस्त जीवलोक एवं ब्रह्मांड अपने लिए स्थान पा लेते हैं। इसीलिए वह केवल एक खंड या कोटि की ओर से नहीं, बल्कि सबकी ओर से बोलता है। सबकी बोली बोलता है। ‘मैं वो शंख महाशंख’ इसी तरह अर्थवान होता है। साथ ही देखने की बात यह है कि जो शंख महाशंख है, वह गणना से बाहर है। अन्तिम गिनती यानी महाशंख भी इस पहाड़े से बाहर है। अरुण कमल की कविताएँ उन्हीं शंख महाशंख लोगों, बाहर कर दिए गए, गणना से छूटे हुए ग़रीब, निर्बल क

100 pages, Kindle Edition

Published September 13, 2023

About the author

Arun Kamal

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जन्म: 15 फरवरी, 1954 को नासरीगंज, रोहतास (बिहार) में।

प्रकाशित पुस्तकें: चार कविता पुस्तकें - अपनी केवल धार, सबूत, नये इलाके में, पुतली में संसार तथा मैं वो शंख महाशंख। दो आलोचना पुस्तकें - कविता और समय तथा गोलमेज। साक्षात्कार की एक पुस्तक - कथोपकथन। समकालीन कवियों पर निबन्धों की एक पुस्तक - दुःखी चेहरों का शृंगार प्रस्तावित। अंग्रेजी में समकालीन भारतीय कविता के अनुवादों की एक पुस्तक - वायसेज़ वियतनामी कवि तो हू की कविताओं तथा टिप्पणियों की अनुवाद-पुस्तिका। साथ ही मायकोव्स्की की आत्मकथा के अनुवाद एवं अनेक देशी-विदेशी कविताओं के अनुवाद।

अनेक देशी-विदेशी भाषाओं में कविताएँ तथा कविता-पुस्तकें अनूदित।

सम्मान: कविता के लिए भारतभूषण अग्रवाल स्मृति पुरस्कार, सोवियत लैंड नेहरू अवार्ड, श्रीकांत वर्मा स्मृति पुरस्कार, रघुवीर सहाय स्मृति पुरस्कार, शमशेर सम्मान और नये इलाके में पुस्तक के लिए 1998 का साहित्य अकादेमी पुरस्कार।

डॉ. नामवर सिंह के प्रधान सम्पादकत्व में आलोचना का सम्पादन (सहस्राब्दी अंक 21 से)।

सम्प्रति: पटना विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के अध्यापक।

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