सिलवटे पड़ी है, अब भी उस चादर पे
यादो का तकिया रखा है सिरहाने पे
जिस पे तू कभी मेरी बाहों में होती थी
जब मेरी नज़र तेरी नज़र से टकराती
खुद पे खुद तेरी पलकें झुक जाती थी
एक मीठी हंसी तेरे लबो पे छा जाती थी
कई वादे किये थे, कई कसमे खायी थी
साथ जीने मरने की रस्मे निभाई थी
संग चलना है मेरे तुम यही कहती थी
खफा ना होना मुझसे यही वादे लेती थी
आज मेरी किस्मत क्यों मजबूर हुयी है
मेरी जान मुझसे क्यों दूर हुयी है ....
सिलवटे पड़ी है अब भी उस चादर पे
यादो का तकिया रखा है सिरहाने पे
Published on September 27, 2013 00:04