वो ढल रहा है तो ये भी रंगत बदल रही है ज़मीन सूरज की उँगलियों से फिसल रही है जो मुझको ज़िंदा जला रहे हैं वो बेख़बर हैं कि मेरी ज़ंजीर धीरे-धीरे पिघल रही है मैं क़त्ल तो हो गया तुम्हारी गली में लेकिन मिरे लहू से तुम्हारी दीवार गल रही है न जलने
...more

Vaibhav’s 2024 Year in Books
Take a look at Vaibhav’s Year in Books, including some fun facts about their reading.
More friends…
Favorite Genres
Polls voted on by Vaibhav
Lists liked by Vaibhav