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इरॉटिक रोमांस – साहित्य वही है जो पाठक के मन को छुए
इरॉटिका और इरॉटिक रोमांस की हिंदी में लोगों को समझ काफी कम है. पाठकों को भी और लेखकों को भी. आमतौर पर हिंदी में इरॉटिका उसे कह दिया जाता है जिसमें सेक्स का चित्रण हो. लेकिन महज सेक्स के चित्रण से कोई भी रचना इरॉटिका या इरॉटिक रोमांस नहीं हो जाती.
इरॉटिका और इरॉटिक रोमांस को समझने से पहले उनके बीच का अंतर समझ लें. इरॉटिका में सेक्स महत्वपूर्ण है. रोमांस ज़रूरी नहीं है. इरॉटिक रोमांस में सेक्स के साथ रोमांस भी ज़रूरी है. नायक और नायिका के बीच भावनात्मक सम्बन्ध होना ज़रूरी है. उनकी भावनाओं पर और उनके भावनात्मक सम्बन्ध पर उनके यौन सम्बन्ध और उनकी यौन इच्छाओं के असर का वर्णन ज़रूरी है.
अब देखते हैं कि इरॉटिका और इरॉटिक रोमांस में सेक्स की क्या भूमिका होनी चाहिए. पहली बात तो यह कि उसमें सेक्स का कोरा चित्रण नहीं होना चाहिए. सेक्स का कोरा चित्रण पोर्न होता है. उसमें इरॉटिक कुछ नहीं होता है. इरॉटिक होने के लिए उसमें नायक या नायिका की यौन इच्छाओं और कल्पनाओं या फैंटेसियों का वर्णन बहुत ज़रूरी है. उन्हें कौन सी बातें या चीज़ें उत्तेजित करती हैं. चाहे वे विपरीत सेक्स के व्यक्ति के रंग-रूप, वेशभूषा या व्यवहार से सम्बन्धित हों या कुछ और जैसे कि किसी वस्तु का स्पर्श या कोई सुगंध. उनकी किस तरह की यौन कल्पनाएँ हैं, किस तरह के सेक्सुअल फेटिश हैं, और वे उनके सम्बन्ध पर क्या असर डालते हैं. इन बातों के बिना कोई भी रचना इरॉटिका या इरॉटिक रोमांस नहीं कहला सकती. एक बार फिर कहूँ, कोरा सेक्स पोर्न होता है, और पोर्न और इरॉटिका अलग-अलग चीज़ें हैं.
इसके अलावा इरॉटिका या इरॉटिक रोमांस लिखते समय दो और बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है. इन दोनों बातों के मूल में एक ही बात है. हर किसी की यौन कल्पनाएँ अलग-अलग होती हैं. पुरुषों और स्त्रियों की अलग-अलग होती हैं. पुरुषों और स्त्रियों में अलग-अलग की अलग-अलग होती हैं. अधिकांश को वनीला सेक्स या जो नार्मल सेक्स होता है वही पसंद होता है, जबकि कई लोग BDSM पसंद करते हैं. उनमें भी कई लोग हार्डकोर BDSM पसंद करते हैं जिसमें कि नार्मल सेक्स या इंटरकोर्स होता ही नहीं है. फिर हर किसी को अलग-अलग चीज़ें उत्तेजित करती हैं. उनके सेक्सुअल फेटिश अलग-अलग होते हैं. BDSM में भी कोई डोमिनेंट होता है तो कोई सब्मिसिव.
तो जो दो बातें जिनका ध्यान रखना ज़रूरी है उनमें पहली बात तो यह कि नायक और नायिका का शारीरिक चित्रण करते समय बहुत अधिक डिटेल न दें. काफी कुछ पाठकों की कल्पनाओं के लिए छोड़ दें. यदि आपने पूरी तस्वीर खींच दी, पाठक की आँखों के सामने लाकर खड़ा कर दिया और यदि पाठक को उस तरह का पुरुष या स्त्री पसंद न हो तो वह इरॉटिक अंशों में आनंद नहीं ले पायेगा.
दूसरी बात यह कि इरॉटिक अंशों में जितनी विविधता हो उतना ही अच्छा है. नायक और नायिका की कल्पनाएँ अलग-अलग हों, उनके बीच कुछ टकराव भी हों, कुछ समझौते भी हों. ये बातें न सिर्फ पाठकों के बड़े वर्ग को उत्तेजित करती हैं, बल्कि उन्हें भावनात्मक रूप से बाँधे भी रखती हैं. साहित्य वही है जो पाठक के मन को छुए, उसे भावनात्मक रूप से बाँधे. सिर्फ कोरी उत्तेजना देने वाली रचना पोर्न होती है. आप उसे साहित्य कह लें, मैं नहीं कहूँगा.
इरॉटिका और इरॉटिक रोमांस को समझने से पहले उनके बीच का अंतर समझ लें. इरॉटिका में सेक्स महत्वपूर्ण है. रोमांस ज़रूरी नहीं है. इरॉटिक रोमांस में सेक्स के साथ रोमांस भी ज़रूरी है. नायक और नायिका के बीच भावनात्मक सम्बन्ध होना ज़रूरी है. उनकी भावनाओं पर और उनके भावनात्मक सम्बन्ध पर उनके यौन सम्बन्ध और उनकी यौन इच्छाओं के असर का वर्णन ज़रूरी है.
अब देखते हैं कि इरॉटिका और इरॉटिक रोमांस में सेक्स की क्या भूमिका होनी चाहिए. पहली बात तो यह कि उसमें सेक्स का कोरा चित्रण नहीं होना चाहिए. सेक्स का कोरा चित्रण पोर्न होता है. उसमें इरॉटिक कुछ नहीं होता है. इरॉटिक होने के लिए उसमें नायक या नायिका की यौन इच्छाओं और कल्पनाओं या फैंटेसियों का वर्णन बहुत ज़रूरी है. उन्हें कौन सी बातें या चीज़ें उत्तेजित करती हैं. चाहे वे विपरीत सेक्स के व्यक्ति के रंग-रूप, वेशभूषा या व्यवहार से सम्बन्धित हों या कुछ और जैसे कि किसी वस्तु का स्पर्श या कोई सुगंध. उनकी किस तरह की यौन कल्पनाएँ हैं, किस तरह के सेक्सुअल फेटिश हैं, और वे उनके सम्बन्ध पर क्या असर डालते हैं. इन बातों के बिना कोई भी रचना इरॉटिका या इरॉटिक रोमांस नहीं कहला सकती. एक बार फिर कहूँ, कोरा सेक्स पोर्न होता है, और पोर्न और इरॉटिका अलग-अलग चीज़ें हैं.
इसके अलावा इरॉटिका या इरॉटिक रोमांस लिखते समय दो और बातों का ध्यान रखना ज़रूरी होता है. इन दोनों बातों के मूल में एक ही बात है. हर किसी की यौन कल्पनाएँ अलग-अलग होती हैं. पुरुषों और स्त्रियों की अलग-अलग होती हैं. पुरुषों और स्त्रियों में अलग-अलग की अलग-अलग होती हैं. अधिकांश को वनीला सेक्स या जो नार्मल सेक्स होता है वही पसंद होता है, जबकि कई लोग BDSM पसंद करते हैं. उनमें भी कई लोग हार्डकोर BDSM पसंद करते हैं जिसमें कि नार्मल सेक्स या इंटरकोर्स होता ही नहीं है. फिर हर किसी को अलग-अलग चीज़ें उत्तेजित करती हैं. उनके सेक्सुअल फेटिश अलग-अलग होते हैं. BDSM में भी कोई डोमिनेंट होता है तो कोई सब्मिसिव.
तो जो दो बातें जिनका ध्यान रखना ज़रूरी है उनमें पहली बात तो यह कि नायक और नायिका का शारीरिक चित्रण करते समय बहुत अधिक डिटेल न दें. काफी कुछ पाठकों की कल्पनाओं के लिए छोड़ दें. यदि आपने पूरी तस्वीर खींच दी, पाठक की आँखों के सामने लाकर खड़ा कर दिया और यदि पाठक को उस तरह का पुरुष या स्त्री पसंद न हो तो वह इरॉटिक अंशों में आनंद नहीं ले पायेगा.
दूसरी बात यह कि इरॉटिक अंशों में जितनी विविधता हो उतना ही अच्छा है. नायक और नायिका की कल्पनाएँ अलग-अलग हों, उनके बीच कुछ टकराव भी हों, कुछ समझौते भी हों. ये बातें न सिर्फ पाठकों के बड़े वर्ग को उत्तेजित करती हैं, बल्कि उन्हें भावनात्मक रूप से बाँधे भी रखती हैं. साहित्य वही है जो पाठक के मन को छुए, उसे भावनात्मक रूप से बाँधे. सिर्फ कोरी उत्तेजना देने वाली रचना पोर्न होती है. आप उसे साहित्य कह लें, मैं नहीं कहूँगा.
Published on December 08, 2018 13:06
•
Tags:
bdsm, इर-ट-क, इर-ट-क-र-म-स
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