ना जाने कब...Poems inspired by Second Spring

ना जाने कब...
तु हो ना हो, तेरी यादों मे गुंजी हैं हर शाम मेरी,
हर दिन, हर शक्स में ढूँढा है मैंने सुरत तुम्हारी,
लमहों की दास्तानें बयान-ए-नाज हैं हमारी;
अधुरी धड़कनें, ख़्वाब अधुरें, अधुरें शिकवे-गिले मेरे,
ना जाने कब मिले अधुरा प्यार, अधुरा साथ, अधुरे एहसास हमारे...
ना जाने कब, ना जाने कब, ना जाने कब ।।१।।
दिल में बड़ा सा तुफान है,
ना जाने कब मेरे इस कोहराम को मुक़ाम मिलें,
ना जाने कब मेरे सासों को तेरें सासों की पहचान मिलें;
ना जाने कब दिल की धड़कनों को तेरी दस्तक मिलें,
ना जाने कब वो अधुरे से पलों को तेरे होने का एहसास मिले...
ना जाने कब, ना जाने कब, ना जाने कब ।।२।।
तु युँ तो है मेरे साथ, मेरे पास, मेरे हर पल में,
पर तुझें खोने पर, खो गया हुँ ख़ुद ही तेरे दिद़ार में,
तु है तो मैं हु, तेरे बिन कयु नही हुँ मैं कुछ भी कहीं पें;
ये ख़ालीपन, ये दिल का रोना, तेरे दस्तक को ढुंढना
मेरे रुह में,
ना जाने कब इस रूह को खोया हुआ वो एहसास मिले...
ना जाने कब, ना जाने कब, ना जाने कब मुझे तु मिलें ।।३।।

Written by - रिध्धी कोठारी
Thanks a lot Riddhi

Second Spring by Sandhya Jane
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Published on May 17, 2016 23:05 Tags: sandhya-jane, second-spring
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