बार्सिलोना

तुम अपने ही किसी साथी कासीना दबाते हुए मिलोगे,
किसी विलाप करते चौराहे पर।
वह साथी, जिसके सीने पर कान लगाकर
तुमने फुरसत में कभी धङकनें सुनी होंगी।उसी सीने को बेतहाशा दबाते हुए,
उसकी शेष साँसों को
अपने हाथों की मुंडेर से थाम लेना चाहोगे।
और हथेलियों के छिद्रों से
तुम्हारे गीत की अनमोल पंक्तियाँ
रिस रही होंगी, तेजी से।
अंजुली भर पानी क्यों नहीं रोक सके तुम
अपनी हथेलियों में कभी,
यह तुम अब जानोगे जबकि
बंदूक की गोली इन हथेलियों के पार हो जाएगी।अपने जूतों में जकङे हुए
तुम बहुत तेज दौङना चाहोगे,
एंबुलेंस से भी तेज।
और चाहोगे याद करना बचपन का एक सबक,
कि हर चीज का विलोम होता है।
जैसे 'निर्जीव' का विलोम 'सजीव',
चाहोगे कि इस सबक की कोई उपयोगिता हो।
मसलन, गोली सीना बेधकर पीठ तक पहुँची तो 'निर्जीव'
और पीठ बेधकर सीने तक पहुँची तो 'सजीव'।
पर तुम जानते हो कि ऐसा नहीं होता।भाषा का व्याकरण सिर्फ तुम्हारे लिए है।
न गोली के लिए, न बंदूक के लिए और न धर्म के लिए।
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Published on September 05, 2017 06:06
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