डार्क नाइट - पुस्तक अंश 1

सारांश :
कबीर का किशोर मन, प्रेम, रोमांस और सेक्स की फैंटेसियों से लबरे़ज है। कबीर की इन्हीं फैंटेसियों का कारवाँ वड़ोदरा की कस्बाई कल्पनाओं से निकलकर लंदन के महानगरीय ख़्वाबों तक पहुँचता है। लंदन के उन्मुक्त माहौल में, कबीर की कल्पनाओं को हर वो ख़ुराक हासिल है, जिसके लिए उसका मन ललकता है। इन्हीं सतरंगी ख़ुराक पर पलकर उसकी कल्पनाएँ कभी हिकमा और नेहा के प्रेम में, तो कभी टीना और लूसी के आकर्षण में ढलती हैं। मगर कबीर के लिए अपने रुपहले ख़्वाबों के हवामहल से निकलकर किशोरियों के मन और काया की भूल-भुलैया में भटकना कठिन है। यही भटकाव उसे ‘डार्क नाइट' में ले आता है; मन की एक ऐसी अवस्था, जिसमें किसी उमंग की कोई रौशनी नहीं है। इसी अँधेरे में कबीर मिलता है, एक स्पेनिश स्ट्रिप डांसर से, जो उसका परिचय डार्क नाइट के रहस्यों से करवाती है। डार्क नाइट के रहस्यों को सुलझाते हुए ही कबीर, नारी प्रेम का संगीत छेड़ना सीखता है; और इस संगीत के सम्मोहन में जकड़ती हैं, दो सुंदरियाँ, प्रिया और माया। प्रिया और माया के आकर्षण में डोलता कबीर, उस दोराहे के जंक्शन पर पहुँचता है, जहाँ उसकी पुरानी कल्पनाएँ जीवित होना चाहती हैं। किसके प्रेम में ढलेंगी कबीर की कल्पनाएँ? किसकी दहली़ज पर जाकर रुकेगा कबीर के ख़्वाबों का कारवाँ? माया या प्रिया?
Dark Night
1
‘आपका नाम?’ उसकी स्लेटी आँखों में मुझे एक कौतुक सा खिंचता दिखाई दिया। मुझसे मिलने वाली हर लड़की की तरह उसमें भी मुझे जानने की एक हैरत भरी दिलचस्पी थी।
‘काम!’ आई जी इंटरनेशनल एअरपोर्ट के प्रीमियम लाउन्ज की गद्देदार सीट में धंसते हुए मैंने आराम से पीछे की ओर पीठ टिकाई। हम दोनों की ही अगली फ्लाइट सुबह थी। सारी रात थी हम दोनों के पास एक दूसरे से बातें करने के लिए।
‘सॉरी काम नहीं, नाम?’
‘जी हाँ, मैंने नाम ही बताया है, मेरा नाम काम है।’
‘थोड़ा अजीब सा नाम है, पहले कभी यह नाम सुना नहीं’ उसकी आँखों का कौतुक थोड़ा बेचैन हो उठा।
‘नाम तो आपने सुना ही होगा, शायद भूल गई हों’
‘याद नहीं कि कभी यह नाम सुना हो।’
‘आपके एक देवता हैं कामदेव।’ थोड़ा आगे झुकते हुए मैंने उसके खूबसूरत चेहरे पर एक शोख नज़र डाली, ‘काम और वासना के देवता, रूप और श्रृंगार की देवी रति के पति’।
उसका चेहरा ग्रीक गोल्डन अनुपात की कसौटी पर लगभग नब्बे प्रतिशत खरा उतरता था। ओवल चेहरे पर ऊँचा और चौड़ा माथा, तराशी हुई नाक, भरे हुए होंठ और मजबूत ठुड्डी और जॉलाइन, सब कुछ सही अनुपात में लग रहे थे। उसकी आँखों की शेप लगभग स्कार्लेट जॉनसन की आँखों सी थी और उनके बीच की दूरी एन्जोलिना जोली की आँखों के बीच के गैप से शायद आधा मिलीमीटर ही कम हो। वह लगभग सत्ताईस-अठ्ठाइस साल की काफ़ी मॉडर्न लुकिंग लड़की थी। स्किनी रिप्ड ब्लू जींस के ऊपर उसने ऑरेंज कलर का लो कट स्लीवलेस टॉप पहना हुआ था। डार्क ब्राउन बालों में कैरामल हाइलाइट्स की ब्लेंडेड लेयर्स कन्धों पर झूल रही थीं। गोरे बदन से शेरिल स्टॉर्मफ्लावर परफ्यूम की मादक खुशबू उड़ रही थी।
फिर भी या तो कामदेव के ज़िक्र पर या मेरी शोख नज़र के असर में शर्म की कुछ गुलाबी आभा उसकी आँखों से टपककर गालों पर फैल गई। इससे पहले कि उसके गालों की गुलाबी शर्म गहराकर लाल होती मैंने पास पड़ा अंग्रेज़ी का अखबार उठाया और फ्रंट पेज पर अपनी नज़रें फिराईं, खबरें थीं, ‘कॉलेज गर्ल किडनैप्ड एंड रेप्ड इन मूविंग कार’, ‘केसेस ऑफ़ रेप, मोलेस्टेशन राइज़ इन कैपिटल’। मेरी नज़रें अखबार के पन्ने पर सरकती हुई कुछ नीचे पहुँची। नीचे कुछ दवाखानों के इश्तेहार थे, ‘रिगेन सेक्सुअल विगर एंड वाइटैलिटी', 'इनक्रीज़ सेक्सुअल ड्राइव एंड स्टैमिना’।
‘मगर यह नाम कोई रखता तो नहीं है। मैंने तो नहीं सुना’ उसके गालों पर अचानक फैल आई गुलाबी शर्म उतर चुकी थी।
‘क्योंकि अब कामदेव की जगह हकीमों और दवाओं ने ले ली है।’ मैंने अखबार में छपे मर्दाना कमज़ोरी दूर करने वाले इश्तेहारों की ओर इशारा किया। शर्म की गुलाबी परत एक बार फिर उसके गालों पर चढ़ आई।
सच तो यही है कि यह देश अब कामदेव को भूल चुका है। अब यहाँ न तो कामदेव के मंदिर बनते हैं और न ही उनकी पूजा होती है। कामदेव अब सिर्फ़ ग्रंथों में रह गए हैं। उन ग्रंथों में जिन्हें इन्होने समाज के महंतों और मठाधीशों को सौंप दिया है। ये महंत बताते हैं कि काम दुष्ट है, उद्दंड है। इन्होने काम को रति के आलिंगन से निकालकर क्रोध का साथी बना दिया है, काम-क्रोध। रति बेचारी को काम से अलग कर दिया गया है। काम जिसकी नज़रों की धूप से उसका रूप खिलता था, उसका श्रृंगार निखरता था, उससे रति की जोड़ी टूट गई है। यदि काम रति के आलिंगन में ही संभला रहे तो शायद क्रोध से उसका साथ ही ना रहे। मगर काम और क्रोध का साथ न रहे तो इन महंतों का काम ही क्या रह जाएगा। इन महंतों के अस्तित्व के लिए बहुत ज़रूरी है कि काम रति से बिछड़कर क्रोध का साथी बना रहे।
‘मैं मज़ाक नहीं कर रहा आपके देश में काम को बुरा समझा जाता है। दुष्ट और उद्दंड। आपको काम को वश में रखने की शिक्षा दी जाती है। इसलिए आप अपने बेटों का नाम काम नहीं रखते। आप भला क्यों दुष्ट और उद्दंड बेटा चाहेंगे?’
‘वैसे कामदेव की कहानी तो आप जानती ही होंगी?’ मैंने अंदाज़ लगाया जो ग़लत था।
‘नहीं कुछ ख़ास नहीं पता।’
‘कामदेव ने समाधि में लीन भगवान शिव का ध्यान भंग किया था और क्रोध में आकर भगवान शिव ने उन्हें भस्म कर दिया था। इसीलिए आप भगवान शिव को कामेश्वर कहते हैं। पालन करने वाले ईश्वर को आपने भस्म करने वाला बना दिया।’
‘ओह! तो फिर रति का क्या हुआ?’ स्त्री होने के नाते उसमें रति के लिए सहानुभूतिपूर्ण उत्सुकता होना स्वाभाविक था।
‘रति काम को जीवित कर सकती थी। काम को और कौन जीवित कर सकता है रति के अलावा? काम तो रति का दास है। विश्वामित्र के काम को मेनका की रति ने ही जगाया था। ब्रह्मर्षि का तप भी नहीं चला था रति की शक्ति के आगे’ मैंने एक बार फिर उसके रतिपूर्ण श्रृंगार को निहारा।
‘तो क्या रति ने कामदेव को जीवित कर दिया?’
‘आपके समाज के महंत रति से उसकी यही शक्ति तो छुपाना चाहते हैं। वे जानते हैं कि जिस दिन रति को अपनी इस शक्ति का बोध हो गया उस दिन पुरुष स्त्री का दास होगा।’
शर्म की वही गुलाबी आभा एक बार फिर उसके गालों पर फैल गई। शायद उस समाज की कल्पना उसके मन में उभर आई जिसमें पुरुष स्त्री का दास हो। सिर्फ़ एक औरत के मन में ही पुरुष पर शासन करने का विचार भी एक लजीली संवेदना ओढ़कर आ सकता है।
‘तो फिर रति ने क्या किया?’
‘रति ने कामदेव को जीवित करने के लिए भगवान शिव से विनती की। और जानती हैं भगवान शिव ने क्या किया?’
‘क्या?’
‘उन्होंने कामदेव को जीवित तो किया मगर बिना शरीर के, ताकि रति की देह को कामदेव के अंगों की आँच न मिल सके। अब कामदेव अनंग हैं और रति अतृप्त है।’
‘ओह!’ उसके चेहरे पर एक गहरा असंतोष दिखाई दिया, ’वैसे आपके नाम की तरह आप भी दिलचस्प आदमी हैं। कितना कुछ जानते हैं इंडिया के बारे में। मुझे यकीन नहीं हो रहा कि आप पहली बार इंडिया आए हैं।’
‘मेरी पैदाइश लंदन की है, मगर मेरी जड़ें इंडिया में ही हैं। मेरे ग्रैंडपेरेंट्स इंडिया से ईस्ट अफ्रीका गए थे, फिर मेरे पेरेंट्स ईस्ट अफ्रीका से निकलकर ब्रिटेन जा बसे’
‘कैसा लगा इंडिया आपको?’
‘खूबसूरत और दिलचस्प, आपकी तरह’ मैंने फिर उसी शोख नज़र से उसे देखा, उसके गाल फिर गुलाबी हो उठे, ‘आपने अपना नाम नहीं बताया’
‘मीरा’ वैसे मुझे लगा कि उसका नाम रति होता तो बेहतर था।
‘काम क्या करते हैं आप?’ मीरा का अगला प्रश्न था।
मैं इसी प्रश्न की अपेक्षा कर रहा था। हम एक ऐसी दुनिया में रहते हैं जहाँ आपका काम, आपका व्यवसाय ही आपकी पहचान होता है। आप कैसे इंसान हैं उसकी पहचान व्यवसाय की पहचान के पीछे ढकी ही रहती है। मेरी पहचान ‘योगा इंस्ट्रक्टर’ की है, हिंदी में कहें तो ‘योग प्रशिक्षक’। इंस्ट्रक्शन्स या निर्देशों की योग में अपनी जगह है। ज़मीन पर सिर रखकर, गर्दन मोड़कर, टाँगें उठाकर, पैर आसमान की ओर तानकर यदि सर्वांगासन करना हो तो उसके लिए सही निर्देशों की ज़रूरत तो होती ही है, वर्ना गर्दन लचक जाने का डर होता है। और यदि कूल्हों को हाथों से सही तरह से न संभाला हो तो जिस कमर की गोलाई कम करने के कमरकस इरादे से योगा सेंटर ज्वाइन किया हो, वही कमर भी लचक सकती है। मगर योग वह होता है जो पूरे मनोयोग से किया जाए, और मन को साधने के लिए निर्देशों की नहीं बल्कि ज्ञान की ज़रूरत होती है। और ज्ञान सिर्फ़ गुरु से ही मिल सकता है। इसलिए मैं स्वयं को योग गुरु कहता हूँ।
‘मैं योग गुरू हूँ’
‘योग गुरू? वो कपालभाति सिखाने वाले स्वामी जी जैसे? आप वैसे लगते तो नहीं’ मीरा की आँखों के कौतुक में फिर पहली सी बेचैनी दिखाई दी।
मुझे पता था उसे आसानी से यकीन नहीं होगा। दरअसल किसी को भी मेरा ख़ुद को योग गुरू कहना रास नहीं आता। जींस-टी शर्ट पहनने वाला, स्पोर्ट्स बाइक चलाने वाला, स्लीप-अराउंड करने वाला योग गुरू? उनके मन में योग गुरू की एक पक्की तस्वीर बनी होती है, लम्बे बालों और लम्बी दाढ़ी वाला, भगवाधारी साधू। मगर योग एक क्रांति है, साइलेंट रेवोलुशन। योगी रेवोलुशनरी होता है, और रेवोलुशनरी इंसान किसी ढाँचे में बंध कर नहीं रहता। निर्वाण की राह पर चलने वाला अगर किसी स्टीरियोटाइप से भी मुक्ति न पा सके तो संसार से मुक्ति क्या ख़ाक पाएगा?
‘हा, हा... वैसा ही कुछ अलग किस्म का। वैसे आप योग करती हैं?’
‘हाँ कभी-कभी, वही बाबाजी वाला कपालभाति। इट्स ए वेरी गुड एक्सरसाइज़ टू कीप फिट’।
‘महर्षि पातंजलि कह गए हैं, डूइंग बोट आसना टू गेट ए फ्लैट टम्मी इस मिसिंग द होल बोट ऑफ़ योगा’ मैंने एक हल्का सा ठहाका लगाया।
‘इंटरेस्टिंग! किस तरह?’ अब तक मीरा मेरे विचित्र जवाबों की आदी हो चुकी थी.
‘कबीर के बारे में जानना चाहेंगी?’
‘कबीर? कौन कबीर?’
‘कबीर मेरा स्टूडेंट है। मुझसे योग सीखता है’
‘ह्म्म्म..क्या वह आपकी तरह ही दिलचस्प इंसान है?’
‘मुझसे भी ज़्यादा’
‘तो फिर बताइए, आई विल लव टू नो अबाउट हिम’
‘कबीर की कहानी दिलचस्प भी है, डिस्ट्रेसिंग भी है, ट्रैजिक भी है और इरोटिक भी है। आप अनकम्फ़र्टेबल तो नहीं होंगी’
‘कामदेव की कहानी के बाद तो अब हम कम्फ़र्टेबल हो ही गए हैं, आप शुरू करिए’ एक बहुत कम्फ़र्टेबल सी हँसी उसके होठों पर खिल गई।
Published on July 01, 2018 14:17
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dark-night, redgrab-books, sandeep-nayyar
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