क्रिएटिविटी क्या है?

क्रिएटिविटी क्या है? मौलिकता क्या है? सृजनात्मकता क्या है? किसे आप क्रिएटिव, मौलिक या सृजनात्मक कहेंगे? आमतौर पर हम किसी भी रचनात्मक कार्य को क्रिएटिव कह देते हैं. यदि क्रिएटिव का सिर्फ शाब्दिक अर्थ देखें तो यह ठीक भी है. कुछ क्रिएट किया, कुछ नया रचा तो क्रिएटिव हो गया. मगर आमतौर पर वह कोई नई रचना होती ही नहीं. वह सिर्फ रीअरेन्ज्मन्ट होता है, पुनर्व्यवस्था होती है, पुनर्विन्यास होता है. जो आपने पढ़ा, सुना, देखा, सीखा, अनुभव किया, विचार किया, उसी को एक नए तरीके से कह दिया. कुछ इधर से लिया, कुछ उधर से लिया, जोड़ा-जाड़ा और एक नई रचना बना दी. इसमें नया क्या हुआ? इससे अधिक क्रिएटिव तो लेगो ब्लॉक्स से खिलौने बनाने वाला बच्चा कर लेता है. उसकी कल्पनाशीलता अधिक होती है. उसकी कल्पना की उड़ान कहीं ऊँची होती है.

तो फिर क्रिएटिव क्या होता है? कब होता है? क्रिएटिव तब होता है जब आप अपनी व्यक्तिगत रचनात्मकता की सीमा से आगे निकलते हैं. जब आप कुछ ऐसा रचते हैं जो आपने न पढ़ा, न सुना, न देखा और न ही अनुभव किया. जो न आपकी जानकारी में है, न आपके ज्ञान में है और न ही आपकी अनुभूति में. बिल्कुल नया. और आमतौर पर वह बिल्कुल नया रचना की प्रक्रिया में ही निकल आता है. रचते-रचते आप कहीं थकते हैं, कहीं अटकते हैं, कहीं ठहरते हैं, कहीं विश्राम लेते हैं और फिर अचानक यूरेका. कुछ बिल्कुल नया स्फुटित होता है. वह नया ज़रूरी नहीं है कि किसी और के लिए भी बिल्कुल नया हो. क्रिएटिव का अर्थ यह नहीं है कि कुछ ऐसा रचा जाए जो आजतक किसी ने नहीं रचा. यदि आप सिर्फ विचारों को रीअरेन्ज कर लें, कहानियों को तोड़-मरोड़ लें, पहले के बने हुए बिल्डिंग-ब्लॉक्स को आगे-पीछे कर लें तो इतने पर्म्यूटैशन और कॉम्बिनेशन बन सकते हैं कि हर बार कोई नई कविता, कोई नई कहानी, कोई नया आलेख, कोई नया उपन्यास निकल आए. मगर उसमें कुछ नया नहीं होता. वही होता है जो आप पहले से जानते हैं. हाँ बहुतों के लिए वह नया हो सकता है. क्योंकि वे वो सब नहीं जानते, उन्होने वह पढ़ा नहीं होता, उन्होने वह अनुभव नहीं किया होता. उनके लिए वह महान सृजन होता है. उनके लिए आप महान रचनाकार होते हैं. मगर आप अपने स्वयं के लिए कुछ नए नहीं होते. कुछ विकसित हुए नहीं होते.

अपने स्वयं के लिए नए होने का अर्थ यह भी नहीं होता कि आप हर किसी के लिए नए हों. जो आपने रचा वह किसी और ने न रचा हो, किसी और ने सोचा न हो, कल्पना न की हो. जब जेम्स वाट ने भाप की शक्ति को पहचाना तब ऐसा ज़रूरी नहीं था कि उनसे पहले किसी और ने भाप की शक्ति को नहीं पहचाना था. बहुत संभव है कइयों ने पहचाना हो. कइयों ने अपने स्तर पर, अपने कुछ स्थानीय प्रयोग भी किए होंगे. वे भाप की शक्ति का सिद्धांत देने वाले पहले व्यक्ति नहीं बन पाए ये अलग बात है. जेम्स वाट बन गए क्योंकि वो अंग्रेज़ थे. उस ब्रिटेन के थे जो उस समय की वैचारिक और वैज्ञानिक क्रांति में विश्व में अग्रणी था. वैसे जेम्स वाट मेरे ही शहर बर्मिंघम के ही थे. यहीं उन्होने भाप का पहला इंजन भी बनाया था और यहीं उनकी कब्र और मक़बरा भी है.

तो खैर क्रिएटिव कैसे हों? क्रिएटिव होने की पहली शर्त होती है स्वयं से ऊपर उठना. अपने अहंकार या ईगो से ऊपर उठना. निज से वैश्विक होना. व्यक्ति से सार्वभौमिक होना. विचारों में डूबना नहीं बल्कि विचारातीत होना, मन में गोते लगाना नहीं बल्कि अमन होना. अपनी व्यक्तिगत चेतना से उपर उठकर वैश्विक चेतना से जुड़ना. अपनी समस्या, अपनी पीड़ा, अपने सुख-दुःख, अपनी अनुभूतियों, अपने सपनों के बजाय मनुष्य की समस्या, मनुष्य की पीड़ा, मनुष्य के सुख-दुःख, मनुष्य की अनुभूतियों, मनुष्य के सपनो की बात कहना. हर रचनाकार के लिए पूरी तरह मौलिक, सृजनात्मक या क्रिएटिव होने के लिए यह एक नितांत अनिवार्य शर्त है. वरना आप सिर्फ रीअरेन्ज करते रह जाएँगे.

यहाँ एक बात और ध्यान देने लायक है और वह है ‘मनुष्य’, ‘मानव’. मानव अर्थात वैश्विक मानव. सम्पूर्ण मानव प्रजाति. यदि आप विश्व के सारे क्लासिक्स उठाकर देख लें तो उनमें अधिकांश वैश्विक मानव की कहानी कहते हैं. वह भले किसी एक मानव पात्र के ज़रिए हो मगर वह कहानी पूरी मानव प्रजाति की मूल समस्याओं, मूल संघर्षों, आम पीडाओं और आम सपनों की कहानियाँ होती हैं. उन कहानियों के पात्र भले किसी एक जाति, किसी एक नस्ल, किसी एक जेंडर या किसी एक सम्प्रदाय के हों, मगर वे किसी एक जाति, किसी एक नस्ल, किसी एक जेंडर या किसी एक सम्प्रदाय की कहानियाँ नहीं होतीं. वह भले ग़ुलामी से लड़ते किसी काले अफ्रीकी या किसी भारतीय दलित की कहानी लगे मगर वह उस नस्ल या उस जाति की कहानी नहीं होती, वह हर दास, हर ग़ुलाम की पीड़ा और संघर्ष की कहानी होती है. वह भले किसी गोरे अंग्रेज़ या किसी हिन्दुस्तानी सामंत के दम्भ और दमन की कहानी लगे मगर वह हर उत्पीड़क, हर आततायी की कहानी होती है. और मानव जीवन की विडंबना यह भी है कि हर ग़ुलाम भी किसी न किसी स्तर पर उत्पीड़क होता है, और हर उत्पीड़क भी किसी न किसी स्तर पर दास होता है.

एक क्लासिक, एक महान रचना तभी बनती है जब वह यूनिवर्सल मैन की कहानी कहे, फिर चाहे वह यूनिवर्सल हीरो हो, यूनिवर्सल विलेन हो या दोनों ही रूप एक ही चरित्र में समाए बैठा हो. .
 •  0 comments  •  flag
Share on Twitter
Published on December 19, 2018 03:08 Tags: क-र-एट-व, क-र-एट-व-ट, क-ल-स-क, म-ल-कत
No comments have been added yet.


Sandeep Nayyar's Blog

Sandeep Nayyar
Sandeep Nayyar isn't a Goodreads Author (yet), but they do have a blog, so here are some recent posts imported from their feed.
Follow Sandeep Nayyar's blog with rss.