मासिक कहानी -१

डर



एक तो अँधेरी रात में गूंजती हुई कुत्तों के रोने की आवाज़ ऊपर से कमरे में टंगी पुरानी घड़ी की टिक टिक। रात के अँधेरे में जैसे किसी ने मनहूसियत की सियाही घोल दी थी। सांय सांय चलती हुई हवा जब खिड़की से टकराती तो खिड़की की खड़ खड़ाहट पूरे जिस्म के रोंगटे खड़े कर देती । ऐसे में पिंकी अचानक अपने बिस्तर पर उठ बैठी और फिर गर्दन झटकते हुए कमरे के दरवाज़े की तरफ लपकी।





“बेटी, कहाँ जा रही हो ?” प्रभा ने जब पिंकी को बिस्तर से उठ कर दरवाज़े की तरफ जाते हुए देखा तो यकायक बोल पड़ी।





पिंकी तो जैसे अपने होशोहवास में ही न थी। उसके दरवाज़े के पास पहुँचते ही दरवाज़ा अपने आप खुल गया।





“चरररररर,” दरवाज़े की चरमराहट बहुत ही भयानक थी।





पिंकी अभी नौ साल की ही थी कुछ दिन पहले ही उसका जन्मदिन मनाया गया था। यूँ तो वह बहुत ही खुश मिजाज़ लड़की थी मगर दो तीन दिन से वह न जाने क्यों खोई खोई सी थी। पिंकी के माता पिता उसे बहुत प्यार करते थे खासकर उसकी माँ प्रभा जो पिंकी को हमेशा अपने कमरे में ही सुलाती थी।





पिंकी के इस तरह उठकर जाने से प्रभा बहुत घबरा गई और भाग कर रणजीत के पास गई। रणजीत पिंकी के पिता जी थे जो बाहर हॉल में सोये हुए थे।





पिंकी अब तक घर के मुख्य दरवाज़े के भी पार निकल गयी थी।





“उठ जाओ पिंकी के पिताजी यह सोने का वक़्त नहीं है ,” प्रभा ने रणजीत को झकझोरते हुए कहा।





“क्या हुआ ? इतना शोर क्यों मचा रही हो ?” रणजीत ने अपनी आँखें मलते हुए कहा।





“अरे वह देखो दरवाज़ा खुला हुआ है, पिंकी हमें छोड़ कर चली गयी है। कुछ करो रणजीत ,” प्रभा ने रणजीत से कहा।





रणजीत फ़ौरन बिस्तर से उठा और हाथ में टोर्च लेकर घर से बाहर की तरफ पिंकी की तलाश में भागा। प्रभा भी रणजीत के पीछे पीछे भागने लगी। आखिर इकलौती बेटी थी उसे ऐसे कैसे जाने देते।





“पिंकी पिंकी ,” चिल्लाते हुए प्रभा और रणजीत पिंकी के पैरों के निशान के पीछे भागते चले जा रहे थे।





थोड़ी ही देर में उन्हें पिंकी जाते हुए दिखाई दी। वह उछल उछल कर छलांगें मारती हुई गांव की पुरानी हवेली की तरफ जा रही थी। जैसे ही प्रभा को आभास हुआ कि पिंकी पुरानी हवेली की तरफ जा रही है उसने रणजीत का हाथ पकड़ लिया।





“रणजीत पिंकी पुरानी हवेली की तरफ जा रही है ,” प्रभा ने रणजीत से कहा।





“तो क्या यह दिलावर का काम है ?,” प्रभा की बात सुनते ही रणजीत के मुंह ने निकल पड़ा।





करीब सौ साल पहले दिलावर इसी हवेली में रहा करता था। वह इस गांव का मुखिया हुआ करता था। बहुत ही निर्दयी और अत्याचारी। आज भी उसका नाम सुनकर गांव वालों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। दिलावर के किस्से पूरे गांव में फैले हुए थे। गांव वालों का कहना था कि दिलावर का भूत हर 12 साल बाद इस गांव से गुज़रता है। खून का प्यासा दिलावर न जाने कब किसे उठा ले जाए यह कोई नहीं जानता था।





तो क्या आज की रात दिलावर पिंकी को उठा कर ले गया था ? यह वह सवाल था जो प्रभा और रणवीर के मन मस्तिष्क को बार बार झकझोर रहा था।





“आज इस दिलावर का खेल ख़त्म करना ही पड़ेगा ,” रणवीर ने प्रभा से कहा।





रणवीर एक बहादुर और निडर आदमी था। मेहनत मजदूरी करने से उसका शरीर फौलाद की तरह मजबूत हो गया था। वह जानता था कि दिलावर को रोकना कोई आसान काम नहीं है। इसमें जान का जोखिम है। मगर बात उसकी एकलौती बेटी की ज़िन्दगी की थी। वह हर जोखिम को उठाने के लिए तैयार था।





“मैं हवेली की तरफ जाता हूँ तब तक तुम सुखिया और बाकी गांव वालों को बुला कर ले आओ ,” रणवीर ने आगे कहा।





“नहीं मैं तुम्हें अकेले हवेली मैं जाने दूँगी ,” प्रभा को डर था कि वह कहीं रणवीर को न खो दे।





“हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। इस पूरे गांव में हमारी मदद सिर्फ सुखिया ही कर सकता है। तुम वक़्त ख़राब मत करो वर्ना हम पिंकी को खो देंगे ,” रणवीर ने प्रभा को समझाते हुए कहा।





पिंकी को खो देने की बात सुनकर प्रभा घबरा गई और फिर वह सुखिया के घर की तरफ दौड़ पड़ी। इधर रणवीर फिर से पिंकी के पीछे पीछे पुरानी हवेली की तरफ जाने लगा।





आज से 12 साल पहले दिलावर ने सुखिया के बेटे को इसी तरह हवेली में लेजा कर मार दिया था। उस दृश्य के बारे में सोच कर ही गांव वालों का मानो खून जम जाता था। सुखिया ने अपनी जान पर खेलकर अपने बेटे को बचाने की कोशिश की थी मगर वह दिलावर की ताकत के सामने न टिक सका। दिलावर तो वैसे भी एक खूनी दरिंदा था जो हर 12 साल बाद अपनी नींद से उठकर एक ख़ूनी खेल खेलता था। बिना किसी तैयारी के उसे रोक पाना नामुमकिन था। उसी दिन से सुखिया दिलावर के नींद से जागने का इंतज़ार कर रहा था।





भागते हुए प्रभा सुखिया के घर पर बहुत ही जल्दी पहुँच गई।





“सुखिया भैया ! अरे ओ सुखिया भैया जल्दी दरवाज़ा खोलो ,” सुखिया के घर के बाहर पहुँच कर प्रभा सुखिया को बुलाने लगी।





“चलो बहन। मैं समझ गया हूँ कि क्या हुआ हैं ,” सुखिया बन्दूक, चाकू, रस्सी और केरोसिन की कैन उठाए हुए बाहर आ गया। सुखिया को पता था कि आज दिलावर के जागने का दिन है। वह बस सूचना मिलने का इंतज़ार कर रहा था।





सुखिया ने गांव के ही चार पांच लोगों को और बुला लिया, जिनमे एक गांव का पुजारी भी था। फिर वह उन सबको अपनी जीप में बिठाकर पुरानी हवेली की तरफ निकल पड़ा।





दूसरी तरफ रणवीर भी पिंकी के पीछे भागता जा रहा था। पिंकी ऊँची ऊँची छलांगे मारते हुए पुरानी हवेली की तरफ तेज़ी से जा रही थी और थोड़ी देर बाद वह पुरानी हवेली के गेट तक पहुँच गयी।





गेट पर पहुँच कर पिंकी थोड़ी देर खड़ी होकर ज़ोर ज़ोर से हंसी और फिर गर्दन ऐंठ कर रणवीर की तरफ देखने लगी।





“अब इसे मुझ से कोई नहीं बचा सकता। अपनी जान बचानी है तो भाग जा रणवीर,” पिंकी ने मरदाना आवाज़ में कहा।





अब यह बिलकुल साफ़ हो चुका था पिंकी दिलावर के कब्ज़े में थी।





“दिलावर आज तू नहीं बचेगा। अपनी ख़ैर चाहता है तो मेरी बेटी को छोड़ दे,” रणवीर ने कहा।





अब पिंकी कोई मासूम बच्ची नहीं लग रही थी। उसकी आँखों में जैसे अंगारे जल रहे थे। लाल लाल आंखें, बड़े बड़े दांत अब वह पिंकी नहीं थी वह तो दिलावर था जिसने पिंकी पर कब्ज़ा किया हुआ था।





हंसती हुई भयावह पिंकी हवेली के गेट में प्रवेश कर गयी। रणवीर ने बिना कोई समय गंवाए भाग कर पिंकी के पैरों को पकड़ लिया। वह जानता था कि उसने पिंकी को छोड़ दिया तो फिर वह कभी वापस नहीं आएगी।





पिंकी रणवीर से अपना पैर छुड़ाने के लिए उसे झटकने लगी। मगर रणवीर ने पिंकी के पैर को कस कर पकड़ा हुआ था। आखिर में वह उसे ऐसे ही घसीटते हुए हवेली के अंदर जाने लगी। रणवीर के पैर पकड़ लेने से पिंकी की रफ़्तार तो कुछ कम हुई थी मगर वह अब भी आगे बढ़ती जा रही थी। जैसे जैसे पिंकी आगे भड़ती उसका रूप और विकराल होता जाता। मानो उसकी ताक़त में इज़ाफ़ा हो रहा हो।





अभी रणवीर पिंकी से जूझ ही रहा था कि सुखिया बाकि लोगों के साथ हवेली पर पहुँच गया। सुखिया को माजरा समझते देर न लगी। उसे अपने साथ लायी रस्सी का एक सिरा रणवीर की तरफ फेंका।





“रणवीर इस रस्सी से पिंकी का पैर बांध दो ” सुखिया ने रणवीर से कहा।





रणवीर ने जैसे ही पिंकी का पैर उस रस्सी से बाँधा पिंकी की आँखों से अंगारे फूटने लगे। ऐसा लग रहा था कि वह सब कुछ जला कर रख देगी।





देखते ही देखते रस्सी धू धू कर के जलने लगी।





इतने में पंडित जी अपनी पोजीशन में आ गए थे। उन्होंने मौका हाथ लगते ही पिंकी के चारों तरफ एक गोला बना दिया और फिर हाथ में गंगाजल लेकर कुछ मंत्र पड़ने लगे।





इतना सब देख कर दिलावर भी मामला समझ चुका था। इस से पहले कि पंडित जी पिंकी पर गंगाजल डाल कर अपना मंत्र पूरा करते पिंकी अचानक एकदम से नार्मल हो गयी और “पापा-पापा” चिल्लाने लगी।





जैसे ही पंडित जी ने गंगाजल पिंकी पर डाला तो गोले के चारों तरफ आग जलने लगी।





मगर दिलावर तो अब तक पिंकी के शरीर को छोड़ चुका था इसलिए उसे कुछ नहीं हुआ।





अभी पंडित जी पूरा मामला समझने की कोशिश ही कर रहे थे कि उनकी आँखें एकाएक लाल हो गयीं और उनमें से चिंगारी फूटने लगी।





“लगता है दिलावर ने पंडित जी को काबू कर लिया है ,” सुखिया ने कहा।





फिर अचानक ही तेज़ हवाएं चलने लगी और तूफानी बारिश शुरू हो गयी।





पंडित जी अब ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे।





“अब तुम सब मरोगे। क्यों सुखिया अपने लड़के की मौत देखकर तेरा दिल नहीं भरा ,” हँसते हुए पंडित जी ने भयानक आवाज़ में कहा।





“तू अपनी फ़िक्र कर दिलावर ,” सुखिया।





और फिर सुखिया ने बिना कोई समय गंवाए एक और रस्सी उठा कर उस से पंडित जी को बांध दिया। इस काम में चार और लोगों ने सुखिया का साथ दिया।





दिलावर ने मगर रस्सी को ऐसे तोड़ दिया जैसे रेशम के धागे हों और उड़ता हुआ हवेली के अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद हवेली में से पंडित जी का शरीर उड़ता हुआ आया और ज़ोर से वहीँ गिर पड़ा जहाँ उन्हें बाँधा गया था। यह बिलकुल ऐसा था जैसे किसी ने पंडित जी को ज़ोर से बाहर फेंका हो।





सुखिया ने चेक किया तो पंडित जी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।





फिर दिलावर अपने कंकाल रूप में उन लोगों के सामने आकर खड़ा हो गया। दिलावर के बाहर आते ही बारिश भी रुक गई, मनो अब कोई और बड़ी विपत्ति आनी हो ।





सुखिया तो जैसे यहीं चाहता था उसने अपनी बन्दूक की सारी गोलियां दिलावर पर उड़ेल दीं। दिलावर पर मगर इसका कोई फरक ही नहीं पड़ रहा था और उसने देखते ही देखते एक और आदमी की जान ले ली।





सुखिया को यह नागवार था। उसने इशारे से सभी आदमियों को अपने पीछे जाने को कहा और दिलवर के सामने दीवार बन के खड़ा हो गया। सुखिया अपने चाकू से दिलावर की हड्डिया तोड़ता मगर दिलवर की अपने आप नयी हड्डियां आ जातीं। काफी देर तक यही चलता रहा फिर अचानक दिलावर के कंकाल में हलचल होनी बंद हो गयी। रणजीत ने फ़ौरन ही उस कंकाल पर केरोसिन उड़ेल कर उसमें आग लगा दी। दिलावर का मृत कंकाल धूं धूं कर के जलने लगा। मगर दिलावर तो शायद पहले ही उस कंकाल को छोड़ चुका था।





सारी रात दिलावर से लड़ते लड़ते किसी को वक़्त का अंदाज़ा नहीं रहा। सूरज की पहली किरण पड़ते ही दिलावर अपनी १२ साल की नींद में चला गया था।





रणवीर खुश था कि उसकी बेटी की जान बच गई और सुखिया दुखी था क्योंकि वह समझ गया था कि उसे अपना बदला लेने के लिए १२ साल और इंतज़ार करना पड़ेगा।









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Published on June 19, 2020 08:36
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