Aakash Dweep Singh's Blog

July 8, 2020

कहानी संख्या ०३

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रात के बारह बजे हैं और रेलगाड़ी अँधेरे को चीरते हुए अपने अंजाम की तरफ दौड़े चली जा रही है। बी -१३ कोच में १३ नंबर की बर्थ पर लेटा हुआ राजकुमार लगातार सोने की कोशिश कर रहा है मगर उसके सामने वाली बर्थ पर लेटी एक छोटी बच्ची उसे सोने नहीं दे रही है । 





” माँ मैं खट्टा खाउंगी ,” वह बच्ची बार बार अपनी माँ से ज़िद कर रही थी। 





राजकुमार को यह समझ नहीं आ रहा कि यह लड़की इतना अजीब बर्ताव क्यों कर रही है । 





इसी उहापोह की स्थिति में एक बार राजकुमार की आँख लग गई मगर वह ज़्यादा देर सो नहीं सका। 





“धड़ाम! ,” रेलगाड़ी की छत पर हुई ज़ोरदार आवाज़ ने कोच में मौजूद सभी लोगों को चौंका दिया। 





आवाज़ इतनी ज़ोरदार थी कि राजकुमार की नींद भी टूट गयी। 





राजकुमार के लिए अब सो पाना मुमकिन नहीं था। वह बार बार ट्रेन की छत को घूर रहा था। उसे ऐसा महसूस हो रहा था जैसे कोई छत पर चल रहा हो। वह बुरी तरह डरा हुआ था। 





कोच में मौजूद बाकी लोगों का भी कुछ ऐसा ही हाल था। 





“चटाक ,” तभी एक ज़ोरदार आवाज़ से खिड़की का शीशा टूट गया और एक भयावह सा दिखने वाला जीव उस टूटी खिड़की से कोच में दाखिल हुआ। न जाने वह क्या चीज़ थी। उसका मुँह एकदम चमगादड़ के जैसा था और वह अपने हाथ पैरों से ट्रेन में मौजूद सामानों को पकड़ पकड़ कर चल रहा था। उसकी लम्बी पूँछ तो उसे और भी भयानक बना रही   थी। देखने में वह बिलकुल एक दरिंदे के जैसा था। 





 “चाय वाला ! बढ़िया मसाला चाय !” कोच में घटित हुए वाकये से बेखबर एक चाय वाला बी १३ में प्रवेश करता है। 





चायवाले की ज़ोरदार आवाज़ ने उस दरिंदे को भी अपनी तरफ आकर्षित कर लिया था जो अपनी जीभ को बार बार अपने बदसूरत होठों पर घुमा रहा था। कोच में मौजूद सब लोग अपनी बर्थ पर सहमे हुए बैठे थे। जैसे हर शख्स खुद को छुपा लेना चाहता हो। 





जैसे ही चाय वाला दरिंदे के पास पहुंचा तो उस दरिंदे के झपट्टा मार कर उसे दबोच लिए और अपने हाथों से पकड़ कर उसका जिस्म पूरी तरह से मरोड़ दिया। फिर अपनी जीभ से उसकी मुंडी तोड़ दी और उसका खून गट गट कर के पीने लगा। बी १३ बर्थ पर दुबक कर  बैठा  राजकुमार अपनी आँखों के ठीक सामने यह सब होते हुए देख रहा था। 





दरिंदे ने चाय वाले का सारा खून निचोड़ कर पी लिए और फिर उसके जिस्म को एक खाली खोखे की तरह वहीँ डाल दिया। उसकी यह हरकत देख कर सामने बैठा एक बदनसीब आदमी बुरी तरह से सकपका गया और थर थर कांपने लगा। दरिंदे ने अपनी जीभ को मुंह से बाहर निकालकर उस आदमी की गर्दन पर  लपेट दिया और देखते ही देखते उसकी मुंडी धड़ से अलग कर दी । मुंडी के धड़ से अलग होते ही एक खून का फव्वारा छूट पड़ा जिसे वह दरिंदा चुस्कियां लेकर पीने लगा। इसके बाद तो वह दरिंदा जैसे किसी बुफ़े में घुसा हो इस तरह एक एक करके यात्रियों को खाता चला जा रहा था।  उसके मुँह से आती चपड़-चपड़ की आवाज़ बहुत ही बेसुरी और भद्दी थी। 





बहुत से यात्रियों ने तो सदमे से ही दम तोड़ दिया था। जो बचे थे उनकी यह बदकिस्मती थी कि उन्हें दरिंदे के हाथों एक दर्दनाक मौत मिल रही थी। इस बीच राजकुमार किसी तरह हिम्मत जुटा कर चुपके से उस कोच से निकल जाता है। 





” बी १३ कोच में एक दरिंदा है, अपनी जान बचने की सोचो ,” राजकुमार अगले कोच में पहुंच कर यात्रियों को जगा-जगा कर कहता है। 





“चल चल सोने दे ,” एक आदमी राजकुमार से कहता है। 





“भाई तुम्हारी जान को खतरा है ,” राजकुमार उसे समझाने की कोशिश करता है। 





“चल पागल कहीं का। जाने कहाँ से घुस आया है ,” आदमी राजकुमार को मार कर भागते हुए कहता है। 





इस कोच के यात्री बी १ ३ में हो रहे नरसंहार से अनभिज्ञ थे। उन्हें राजकुमार की बातें मज़ाक लग रहीं थीं। राजकुमार सब को आगाह करने की पूरी कोशिश कर रहा था मगर कोई उसकी बात सुनने को राज़ी नहीं था। 





वहीँ  बैठकर सिगरेट पी रहे एक आदमी ने राजकुमार को इशारा करके अपने पास बुलाया और राजकुमार के पास आते ही वह उसके मुंह पर सिगरेट का धुंआ उड़ाते हुए  दांत  चियार कर हसने लगा जैसे राजकुमार कोई पागल आदमी हो।  





परन्तु उसकी यह हंसी ज़्यादा देर की नहीं थी। इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता अचानक ही उस आदमी के जिस्म के दो टुकड़े हो जाते हैं। यह काम दरिंदे का था जो चुपचाप इस कोच में दाखिल हो गया था । चट चट करते हुए दरिंदा उस आदमी के जिस्म में से मास को इस तरह खाने लगा जैसे वह कोई चॉकलेट का डब्बा हो। थोड़ी ही देर में उस आदमी के मास को वह चाट कर साफ़ कर देता है और उसकी खाल को वहीँ डाल देता है। 





अब तक राजकुमार की बात पर हसने वाले अब उस दरिंदे का निवाला बन रहे थे। दरिंदा इस कोच में भी एक एक कर के सारे आदमियों को मारने लगा। इतनी भयानक मौत कि देखने वाले की रूह तक काँप जाए। जैसे जैसे वह खून पीता जा रहा था उसकी ताक़त भी बढ़ती जा रही थी।  





वैसे तो राजकुमार भी डरा हुआ था मगर न जाने कैसे उसमे इतनी शक्ति का संचार हो रहा था कि उसने अभी तक खुद को दरिंदे से बचाया हुआ था।  किसी तरह मौका देख कर राजकुमार इस कोच से भी बच कर निकलने में कामयाब हो जाता है। मगर इस बार बच कर निकलने वाला वह अकेला नहीं था बल्कि कुछ और आदमी भी उसके साथ निकल गए थे। 





” भाई अगर इस ट्रेन में रहे तो जान से हाथ धोना पड़ेगा ,” राजकुमार के साथ अगले कोच में पहुँचने वाले एक यात्री ने कहा।





“अगर हम दरवाज़े को बंद कर दें तो दरिंदा आगे नहीं आ पायेगा ,” दुसरे आदमी ने सुझाव दिया। 





यह बात सभी को पसंद आई। इसमें जोखिम भी काम नज़र आ रहा था। अत: सब लोग कोच में मौजूद भारी लगेज़ से दोनों कोच के बीच वाले दरवाज़े को बंद करने में जुट गए। दरवाज़े को बंद कर के उसके बाहर भारी भारी बक्से रख दिए गए। दरवाज़ा बंद हो जाने से सभी यात्री खुश थे क्योंकि अब अंदर से धक्का देकर इस दरवाज़े को खोल पाना किसी इंसान के लिए मुमकिन नहीं था। 





दूसरी तरफ दरिंदा लगातार एक के बाद एक आदमी को मारता जा रहा था। छोटे छोटे बच्चों को तो वह एक बार में ही चबा डालता था। उसने पूरे कोच को मास और खून से सन दिया था। कोच में फैली ताज़े मास की दुर्गंद वातानुकूलक के द्वारा पूरी ट्रेन में फ़ैल गयी थी। कच्चे इंसानी मास और खून का सेवन करने से दरिंदा बहुत ताकतवर हो चुका था। अब उसे रोक पाना आसान नहीं था। सब लोगों को मारने के बाद जब दरिंदा अगले कोच में घुसने के लिए आगे बढ़ता है तो बंद दरवाज़े को देख कर बौखला जाता है। दरिंदा खिड़की तोड़ कर कोच से बाहर निकल जाता है और पूरी रेलगाड़ी के ऊपर नीचे घूमने और चक्कर लगाने लगता है और आखिर में अगले कोच की खिड़की तोड़कर उसमे दाखिल हो जाता है। 





अचानक उस शैतानी दरिंदे तो सामने देखकर राजकुमार और बाकी यात्रियों में खलबली मच जाती है। तभी एक साहसी बलवान आदमी एक लोहे की रोड को उस शैतान के जिस्म के आर पार कर देता है जिससे शैतान बिलबिला उठता है।





“बहुत बढ़िया,” राजकुमार उस आदमी से कहता है। 





मगर फिर अगले ही पल वह दरिंदा खुद को संभालता है और छड़ी तो खींच के अपने शरीर से बाहर निकाल देता है।  





तभी तेज़ बारिश भी शुरू हो जाती है और खिड़की से अंदर पानी आने लगता है।  





वहां खड़े सब लोग सहम जाते हैं। एक तरफ दरिंदा और दूसरी तरफ तेज़ बारिश, कोई करे भी तो क्या करे किसी को कुछ समझ नहीं आता। शैतानी दरिंदे को सँभलने के लिए इतना समय काफी था। वह अगले शिकार के लिए तैयार था मगर तभी वह बलशाली आदमी बिना किसी घबराहट के अपने पास रखे तेज़ चाक़ू से एक ही वार में उस दरिंदे का सिर काट कर धड़ से अलग कर देता है। 





मुंडी काट जाने से दरिंदा फड़फड़ाने लगता है और लड़खड़ाकर एक बर्थ पर गिर जाता है।  थोड़ी देर में उसके जिस्म की फड़फड़ाहट रुक गयी मगर उसकी पूँछ अभी भी हिल रही थी जैसे वह मक्खी उड़ा रहा हो।  दरिंदे के इस तरह निढाल होकर गिर जाने से सभी यात्री बहुत खुश होते हैं और अपनी जगह पर नाचने और चिल्लाने लगते हैं।  अब बस उसकी पूँछ में हो रही हलचल के रुक जाने का इंतज़ार था। बहुत देर तक यह इंतज़ार करते करते सब लोग परेशान होने लगे। 





 जब शैतानी दरिंदे की पूँछ में हो रही हलचल फिर भी न रुकी तो खीज कर एक बूढ़ी महिला उसके पास गयी और उसकी पूँछ को अपने पैर से ज़मीन पर मसलने लगी।  





बूढ़ी औरत के द्वारा पूँछ मसले जाने से दरिंदे में एक बार फिर हलचल तेज़ होने लगती है। जैसे वह तड़प रहा हो। फिर एक तेज़ झटके से अपनी पूँछ को उस बुढ़िया के पैरों के नीचे से खींच लेता है जिससे बुढ़िया लड़खड़ाकर गिर पड़ती है।  बुढ़िया जैसे ही गिरती है सब लोग ज़ोर ज़ोर से हसने लगते हैं। किसी को इस बात का अंदाजा नहीं होता कि आगे क्या होने वाला है सब मस्ती में मशगूल होते हैं तभी अचानक दरिंदा अपनी पूँछ को बुढ़िया के गले में कस देता है और फिर उसका सर जिस्म से ऐसे अलग कर देता है जैसे किसी पेड़ से फल तोड़ रहा हो। ऐसा होते ही सब विस्मय से दरिंदे को देखने लगते हैं। किसी को समझ नहीं आ रहा था कि क्या हो रहा है। दरिंदा उस बुढ़िया के सिर को अपनी पूँछ से उठाकर अपनी गर्दन पर रख लेता है। उसके ऐसा करते ही बुढ़िया का सर दरिंदे के जिस्म से जुड़ जाता है। 





अब तो दरिंदा और भी भयानक दिखने लगा था। लाल लाल चमकती हुई आँखें, लम्बे बाल, बाहर निकले हुए नुकीले दांत। शैतान से जुड़ते ही बुढ़िया के सिर में कई परिवर्तन हो गए थे। शैतान अपने नए सिर से पहले अपने हाथ -पैरों को देखता है और फिर सामने खड़े आदमी को पकड़कर उसकी गर्दन में तेज़ नुकीले दांत गढ़ा देता है। 





शैतान का खूनी खेल एक बार फिर शुरू हो जाता है। एक के बाद दूसरा और फिर ऐसे ही इस डब्बे में भी अनेकों आदमियों का नरसंहार कर देता है। तभी राज कुमार को वहां एक चैन दिखाई देती है। 





“इसको चैन से बांध देना चाहिए ,” राजकुमार अपने बचे हुए साथियों से कहता है। 





फिर मौका देखकर, जब शैतानी दरिंदा एक आदमी का मास खा रहा होता है तो, राजकुमार चैन का फंदा बनाकर उस शैतान को जकड़ने की कोशिश करता है। चैन को कई राउंड उस दरिंदे के बदन पर कास कर बाँध दिया जाता है।  चैन से बांध जाने के कारण दरिंदा फिर से तड़पने लगता है। 





अब तक दरिंदे को खूनखराबा करते हुए काफी समय बीत चुका था। सुबह होने को थी। तभी खिड़की में से हलकी हलकी धूप ट्रेन के डब्बे में आने लगती है । जैसे ही धूप दरिंदे पर पड़ती है तो दरिंदा बुरी तरह से तड़पने लगता है और फिर कसकर जोर लगाते हुए चैन को तोड़ देता है।  चैन टूटते ही दरिंदा आज़ाद हो जाता है मगर अब न जाने उसके शैतानी दिमाग में क्या चल रहा होता है। वह चलती हुई ट्रैन से खिड़की का शीशा तोड़ कर निकल भागता है। 





इधर ट्रेन में मौजूद बचे हुए यात्री चैन की सांस लेते हैं। कुछ घंटे बाद ट्रेन अपने स्टेशन पर पहुँच जाती है। किसी को इस रहस्यमयी घटना के बारे में कुछ पता नहीं था। एक साथ इतनी लाशों को देख कर स्टेशन पर खलबली मच जाती है। 





राजकुमार भी अब ट्रेन से निकल कर अपने होटल में  चला जाता है। 





किसी को पता नहीं चलता कि उस शैतानी दरिंदे का क्या हुआ  मगर उस घटना के बाद से बचे हुए लोग ट्रेन का नाम सुनते ही सहम जाते हैं कि कहीं वह दरिंदा फिर से ना आ जाये।

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Published on July 08, 2020 05:59

June 24, 2020

कहानी संख्या २

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खूनी दरिंदे



अँधेरी अमावस की रात थी। तेज़ हवाएं चल रहीं थीं। दूर दूर तक कोई दिखाई न पड़ता था। वह चारों ऐसी काली रात में गांव से जाती सुनसान सड़क पर शहर के लिए निकले थे। बीच बीच में हवा का झोंका जब तेज़ होता तो सड़क के पास की झाड़ियों से सरसराहट की आवाज़ आती। जैसे जैसे रात गहराती जा रही थी माहौल और डरावना होता जा रहा था। कभी कभी अचानक ऐसा लगता कि कहीं कोई चीख रहा है और फिर रात की ख़ामोशी उस आवाज़ को अपने आगोश में छुपा लेती। इस मनहूस काली रात में लोमड़ी के रोने की आवाज़ किसी अपशगुन की तरह लग रही थी। डर से थर थर कांपते हुए वह चारों पैदल चलते चले जा रहे थे। न जाने ऐसा कौन सा काम आ पड़ा था कि रात को ही जाना ज़रूरी था। वह चारों अभी कुछ ही दूर पहुंचे थे कि आसमान से उतरता हुआ एक अनजान साया तेज़ी से उन चारों की तरफ बढ़ा और इस से पहले कि उनमें से कोई कुछ समझ पाता वह एक आदमी को झप्पटा मार कर ऊपर उड़ा ले गया। बचे हुए तीनों आदमी अपनी जान बचाने के लिए भागे मगर गांव की मिटटी भी शायद आज उनकी बलि मांग रही थी। शैतानी साया जिस आदमी को उठा कर ले गया था थोड़ी ही देर में ज़मीन पर उसके परखच्चे गिरने लगे ऐसे जैसे किसी कौवे के मुंह से मांस के छीछड़े गिर रहे हों। फिर उस शैतानी साये ने एक एक कर के बाकी तीनों के भी परखच्चे उड़ा दिए। पूरी सड़क उन चारों के खून से सन चुकी थी। इतनी दर्दनाक मौत कि किसी की चीख भी न निकल पाई।





इस घटना से अनभिज्ञ पूरा गांव गहरी नींद में सोया हुआ था। कहीं किसी को कोई खबर न थी। सूरज रोज़ की भांति सुबह अँधेरे में ही उठा। वह रोज़ गांव से शहर दूध लेकर जाता था और इस काम के लिए उसे जल्दी उठना पड़ता था। आज भी वह नियम के अनुसार अपनी भैंसों का दूध टंकी में भर कर चलने की तैयारी करने लगा और दिन निकलते ही दूध की टंकी को साइकिल पर टांग कर शहर की तरफ रवाना हो गया ।





“भोर भाई जागो नन्द लाला…….” अपनी मस्ती में गाता गुनगुनाता हुआ सूरज साइकिल पर पैडल मारे जा रहा था।





गांव से जाती इस सड़क पर निकलने वाला वह पहला आदमी था। गांव के लोग वैसे भी शहर कम ही जाया करते थे। ऐसे चलते हुए उसे अभी कुछ ही देर हुई थी कि अपनी आँखों के सामने का नज़ारा देखकर उसकी चीख निकल गई। सड़क पर चारों तरफ मांस के छीछड़े बिखरे हुए थे। कोलतार की काली सड़क पर जैसे किसी ने लाल रंग की पच्चीकारी कर दी हो। हर तरफ खून ही खून। हवा में बूचड़खाने की जैसी बदबू समाई हुई थी। इतना भयानक नज़ारा देखकर सूरज को चक्कर आ गया और वह बेहोश हो कर वहीँ गिर पड़ा। उसका सारा दूध भी वहीँ फ़ैल गया ।





बहुत देर बाद जब तेज़ धूप मुंह पर पड़ने लगी तो सूरज को कुछ होश आया। शायद अभी तक कोई दूसरा इस सड़क से नहीं गुज़रा था। सूरज को अभी भी कुछ समझ नहीं आ रहा था। वह बार बार सड़क की तरफ देखता जैसे पहले जो देखा वह कोई धोखा हो मगर सड़क पर फैले मांस के छीछड़े वहां घटी अनहोनी की खुद गवाही दे रहे थे।





” बचाओ ! बचाओ!” पूरी तरह होश में आने के बाद चिल्लाते हुए सूरज अपनी साइकिल को तेज़ गति से चलाता हुआ वहां से गांव की तरफ भाग लिया।





सूरज को कुछ समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे और उहापोह की स्थिति में सीधे सुखिया के घर जा पहुंचा।





“सुखिया भैया ! सुखिया भैया ! दरवाज़ा खोलो,” सुखिया के घर का दरवाज़ा पीटते हुए सूरज चिल्लाने लगा।





“अरे सूरज तुम ! क्या हुआ तुम्हारे पसीने क्यों छूट रहे हैं ,” सुखिया ने दरवाज़ा खोलते ही कहा।





“अनहोनी हुई है सुखिया भैया। खून ! चारों तरफ खून है,” सूरज।





“अच्छा ! मगर यह दिलावर* तो नहीं हो सकता ,” सुखिया के मुंह से निकला।





अनहोनी होना इस गांव के लिए कोई नयी बात नहीं थी। दिलावर के भूत के आतंक से गांव वाले भली भांति परिचित थे। मगर दिलावर का भूत भी हर १२ साल बाद आता था और उसे गए अभी १ महीना भी नहीं बीता था। सुखिया के मन में भी शायद यही विचार चल रहे थे।





सुखिया ने फ़ौरन अपनी जीप निकली और सूरज को लेकर वह दृश्य देखने गया। विभित्स दृश्य को देखकर सुखिया के भी होश उड़ गए।





यह मंज़र देखते ही सुखिया ने अपनी जीप मोड़ ली और सीधे पुजारी जी के पास जा पहुंचा। पुजारी जी को पूरी घटना से अवगत करवा कर सुखिया पुजारी जी और कुछ अन्य गांव वालों के साथ रात की तैयारी करने में जुट गया। कोई नहीं जानता था कि इस घटना को किसने अंजाम दिया था मगर तैयारी करना तो ज़रूरी ही था। सुखिया ने बन्दूक, चाकू, जंजीर जैसे उपकरण अपनी जीप में रख लिए और थे और अब बस रात का इंतज़ार था।





जैसे जैसे समय गुज़र रहा था रात का साम्राज्य स्थापित होता जा रहा था। कोई नहीं जानता था कि आने वाली रात अपने साथ क्या लाने वाली थी। हर तरफ डर का माहौल था। रात होते ही गांव के सभी लोगों ने खुद को अपने अपने घर में क़ैद कर लिया। हर तरफ सन्नाटा था। बस सुखिया अपनी जीप में पुजारी जी और कुछ लोगों के साथ पूरे गांव की निगरानी कर रहा था।





अभी तक सारा माहौल शांत था मगर न जाने कैसे अचानक तेज़ हवायें चलने लगीं। शैतानी ताकत की मौजूदगी से जीप में सवार सुखिया और बाकि लोग एकदम चौकन्ने हो गए और चारों तरफ ध्यान से देखने लगे।एकाएक एक अनहोनी अजीब घटना ने उन सबका ध्यान अपनी तरफ खींच लिया। उन लोगों ने देखा कि एक शैतानी साया सूरज की एक भैंस को उठा कर हवा में ऊपर लेजा रहा है। भैंस को ऊपर लेजाकर उस साये ने भैंस के दो टुकड़े और कचर कचर कर के उन्हें खाने लगा। जैसे जैसे वह भैंस को खाता जाता, मांस के छीछड़े आसमान से नीचे टपकते जाते। एक भैंस का काम तमाम करने के बाद वह शैतानी साया इसी तरह से दूसरी भैंस को उठा लाया और उसके भी दो टुकड़े कर के उसे खाने लगा।





यह बहुत ही भयानक दृश्य था जिसे देख पाना हर आदमी के बस की बात नहीं थी। सुखिया ने हालत की गंभीरता को समझते हुए फ़ौरन ही जीप की हेडलाइट उस साये के ऊपर फोकस कर दी।





पुजारी जी इस मंजर को देख कर हतप्रभ थे। उन्होंने ऐसा पहले कभी नहीं देखा था। सुखिया को कुछ नहीं सूझा तो उसने ज़ंजीर को बहुत तेज़ी से घुमाते हुए उस शैतानी साये की तरफ फेंका जिस से उस शैतानी साये को तो कोई फर्क नहीं पड़ा पर उसकी नज़र इन लोगों पर पड़ गयी। उसने भैंस को वहीँ पटक दिया और तेज़ी से उड़ता हुआ आया और जीप में से एक आदमी को उठा के ऊपर ले गया। सुखिया ने कई गोलियां चलाईं मगर साये को कुछ नहीं हुआ।





इस दरम्यान पुजारी की हाथ में माला पकड़ कर ज़ोर ज़ोर से किसी मंत्र का जाप कर रहे थे। उस आदमी को खतम कर के वह साया फिर से जीप की तरफ झपटा मगर इस बार किसी आदमी को उसके द्वारा उठाए जाने से पूर्व ही पुजारी जे ने माला उस शैतानी साये की तरफ फेंकी जो आश्चर्यजनक रूप से सीधे उसके गले में जाकर गिरी।





“मुझ छोड़ दो ! मुझे छोड़ दो,” अभी तक खुनी तंदर मचाने वाला वह भयानक साया गए में माला गिरते ही भेद की तरह मिमयाने लगा।





“दुष्ट ! पापी ! अधर्मी ! छोड़ दूँ तुझे। बता कौन है तू ? कहाँ से आया है ? बता नहीं तो अभी भस्म कर दूंगा तुझे ,” पुजारी जी ने ज़ोर से पूछा।





” मैं ठाकुर का भूत हूँ। पुरानी हवेली में सोया हुआ था मगर उस रात दिलावर के भूत से लड़ते लड़ते गांव वालों ने मुझे जगा दिया था। मुझे छोड़ दो ,” शैतानी साये ने कहा।





पुजारी जी मन ही मन कुछ जाप करने लगे। वह शायद ठाकुर के भूत को मुक्ति करना चाहते थे। मगर अचानक न जाने क्या हुआ। पंडित जी का सर एकाएक बम की तरह फट पड़ा और उनका जिस्म तड़फड़ाता हुआ जमीन पर जा गिरा। फिर एकाएक कई सारे साये जीप में सवार आदमियों को झपट झपट कर कचर कचर करके गाजर मूली की तरह खाने लगे। पूरी जीप खून से भर चुकी थी। ऐसे में भी सुखिया ने हिम्मत नहीं हारी और किसी तरह खुद को बचाते हुए छिपते छुपाते वहां से निकल गया और मंदिर में पहुंचकर सुबह होने का इंतज़ार करने लगा।





उधर सुखिया सुबह होने का इंतज़ार कर रहा था और दूसरी तरफ उन खुनी दरिंदों ने पूरे गांव में कोहराम मचा रखा था। हर तरफ लाशें ही लाशें। हर तरफ खून ही खून । आज शायद इस गांव में कोई ज़िंदा नहीं बचना था। एक साथ इतने सारे खूनी दरिंदे कोई सोच भी नहीं सकता था।





सुबह सूरज निकलने के बाद सुखिया जब मंदिर से बाहर आया तो पूरा गांव खाली हो चुका था। हर घर के बाहर लाशें पड़ी थी। अगर सुखिया ने आज कुछ न किया तो कल यह दरिंदे किसी दूसरे गांव को निशाना बना सकते थे। पूरी इंसानियत का वजूद सुखिया के जिम्मे था, वह यूँहीं हाथ पर हाथ धरे कैसे बैठ सकता था।





यही सोच कर सुखिया दौड़ कर अपनी जीप तक पहुंचा उसमे पड़ी लाशों को जीप से नीचे उतरा और फिर खून से लथपथ जीप को लेकर सीधे गंगा घाट पर मौजूद साधु बाबा की कुटिया में गया।





“साधू बाबा आज मानवता खतरे में है,” कुटिया में पहुंचकर सुखिया ने वहां के शीर्ष बाबा से प्रार्थना करते हुए कहा।





“ऐसा क्या हुआ बालक ,” बाबा ने उत्सुकता पूर्वक पूछा।





इसपर सुखिया ने सारी घटना की जानकारी बाबा को दे दी।





“यह तो बहुत गंभीर समस्या है। हमें तुरंत वहां जाना होगा ,” बाबा के मुख पर चिंता की लकीरें साफ़ देखी जा सकती थीं।





फिर करीब ६-७ बाबा सुखिया के साथ उसके गांव की तरफ प्रस्थान कर गए।





गांव में पहुँचते ही एक बाबा ने मंदिर के अग्नि कुंड में अग्नि प्रज्वलित की औरबाकि बाबाओ और सुखिया को उस अग्नि के इर्द गिर्द बैठा कर हवन करना प्रारम्भ कर दिया। बाबा का हवन जैसे जैसे पूर्णता की तरफ अग्रसर होता जा रहा था गांव एक सुनहरे गोले में कैद होता जा रहा था।





“हमने इस गांव को मन्त्रों के जाल में बाँध दिया है , जब तक इस कुंड में अग्नि प्रज्वलित रहेगी कोई शैतानी ताक़त इस गांव से बाहर नहीं जा सकेगी ,” हवन क्रिया को पूर्ण करने के बाद बाबा ने कहा।





सबने हवन कुंड में बहुत साड़ी सामिग्री दाल दी जिस से कि अग्नि पर्याप्त समय तक कुंड में धधकती रहे। इतना करते करते दिन ढल गया और फिर रात के अँधेरे में खुनी साये पूरे गांव में मंडराने लगे।





सही मौका देख कर सुखिया और सारे बाबा भी मंदिर प्रांगड़ से बहार आ गए। जब खुनी दरिंदों ने इंसान को देखा तो खून की प्यास बुझाने के लिए लपके। मगर इस चुनौती के लिए साधू भी तैयार थे। बाबा ने अपने हाथ में हवन कुंड की भसम ली हुई थी जिसे खुनी दरिंदों के पास आते ही किसी मंत्र का जाप करते हुए बाबा ने हवा में उछाल दिया। इस से वह एक दम से बिलबिला गए और अपने बहुत ही भयानक रूप में आ गए । आसमान में बिजली कडकडाने लगी। दूसरी तरफ बाबा भी किसी मंत्र का जाप किये जा रहे थे।





खुनी साये बहुत कोशिश करके भी किसी बाबा को छू नहीं पा रहे थे। फिर उन दरिंदों ने भयानक भयानक आवाज़े निकलना शुरू कर दिया जिससे एक पल के लिए एक बाबा घबरा गए।उन नर पिशाचों को तो बस एक पल की ही दरकार थी। उन्होंने उस बाबा को वहीँ धराशाई कर दिया। लेकिन अब तक बाकी बाबाओं का मन्त्रों का जाप पूरा हो चुका था। उन्होंने अपने कमंडल के जल लेकर जैसे की भूतों पर फेंका तो सारे भूत सिकुड़ने लगे। बस इसी मौके की तो दरकार थी, सुखिया ने उन भूतों को बाबा की दी हुई बोतलों में कैद कर लिया।





इस लड़ाई को चलते हुए पूरी रात गुज़र गयी। सुबह सवेरे सुखिया बाबा को उनके आश्रम में छोड़ आया जहाँ मृत बाबा का अंतिम संस्कार किया गया और पकडे गए भूतों को मुक्ति मिलने तक के लिए सुरक्षित रख दिया गया।





सुखिया का गांव बर्बाद हो चुका था, अब वापस जाने का भी कोई मतलब नहीं था, मगर उसने दिलावर से बदला लेने की जो कसम खाई हुई थी उसके लिए उसे वापस जाना ही था।





*नोट :- दिलावर के बारे में जानने के लिए मासिक कहानी संख्या १ (डर ) पढ़ें।

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Published on June 24, 2020 14:43

June 19, 2020

मासिक कहानी -१

डर



एक तो अँधेरी रात में गूंजती हुई कुत्तों के रोने की आवाज़ ऊपर से कमरे में टंगी पुरानी घड़ी की टिक टिक। रात के अँधेरे में जैसे किसी ने मनहूसियत की सियाही घोल दी थी। सांय सांय चलती हुई हवा जब खिड़की से टकराती तो खिड़की की खड़ खड़ाहट पूरे जिस्म के रोंगटे खड़े कर देती । ऐसे में पिंकी अचानक अपने बिस्तर पर उठ बैठी और फिर गर्दन झटकते हुए कमरे के दरवाज़े की तरफ लपकी।





“बेटी, कहाँ जा रही हो ?” प्रभा ने जब पिंकी को बिस्तर से उठ कर दरवाज़े की तरफ जाते हुए देखा तो यकायक बोल पड़ी।





पिंकी तो जैसे अपने होशोहवास में ही न थी। उसके दरवाज़े के पास पहुँचते ही दरवाज़ा अपने आप खुल गया।





“चरररररर,” दरवाज़े की चरमराहट बहुत ही भयानक थी।





पिंकी अभी नौ साल की ही थी कुछ दिन पहले ही उसका जन्मदिन मनाया गया था। यूँ तो वह बहुत ही खुश मिजाज़ लड़की थी मगर दो तीन दिन से वह न जाने क्यों खोई खोई सी थी। पिंकी के माता पिता उसे बहुत प्यार करते थे खासकर उसकी माँ प्रभा जो पिंकी को हमेशा अपने कमरे में ही सुलाती थी।





पिंकी के इस तरह उठकर जाने से प्रभा बहुत घबरा गई और भाग कर रणजीत के पास गई। रणजीत पिंकी के पिता जी थे जो बाहर हॉल में सोये हुए थे।





पिंकी अब तक घर के मुख्य दरवाज़े के भी पार निकल गयी थी।





“उठ जाओ पिंकी के पिताजी यह सोने का वक़्त नहीं है ,” प्रभा ने रणजीत को झकझोरते हुए कहा।





“क्या हुआ ? इतना शोर क्यों मचा रही हो ?” रणजीत ने अपनी आँखें मलते हुए कहा।





“अरे वह देखो दरवाज़ा खुला हुआ है, पिंकी हमें छोड़ कर चली गयी है। कुछ करो रणजीत ,” प्रभा ने रणजीत से कहा।





रणजीत फ़ौरन बिस्तर से उठा और हाथ में टोर्च लेकर घर से बाहर की तरफ पिंकी की तलाश में भागा। प्रभा भी रणजीत के पीछे पीछे भागने लगी। आखिर इकलौती बेटी थी उसे ऐसे कैसे जाने देते।





“पिंकी पिंकी ,” चिल्लाते हुए प्रभा और रणजीत पिंकी के पैरों के निशान के पीछे भागते चले जा रहे थे।





थोड़ी ही देर में उन्हें पिंकी जाते हुए दिखाई दी। वह उछल उछल कर छलांगें मारती हुई गांव की पुरानी हवेली की तरफ जा रही थी। जैसे ही प्रभा को आभास हुआ कि पिंकी पुरानी हवेली की तरफ जा रही है उसने रणजीत का हाथ पकड़ लिया।





“रणजीत पिंकी पुरानी हवेली की तरफ जा रही है ,” प्रभा ने रणजीत से कहा।





“तो क्या यह दिलावर का काम है ?,” प्रभा की बात सुनते ही रणजीत के मुंह ने निकल पड़ा।





करीब सौ साल पहले दिलावर इसी हवेली में रहा करता था। वह इस गांव का मुखिया हुआ करता था। बहुत ही निर्दयी और अत्याचारी। आज भी उसका नाम सुनकर गांव वालों के रोंगटे खड़े हो जाते थे। दिलावर के किस्से पूरे गांव में फैले हुए थे। गांव वालों का कहना था कि दिलावर का भूत हर 12 साल बाद इस गांव से गुज़रता है। खून का प्यासा दिलावर न जाने कब किसे उठा ले जाए यह कोई नहीं जानता था।





तो क्या आज की रात दिलावर पिंकी को उठा कर ले गया था ? यह वह सवाल था जो प्रभा और रणवीर के मन मस्तिष्क को बार बार झकझोर रहा था।





“आज इस दिलावर का खेल ख़त्म करना ही पड़ेगा ,” रणवीर ने प्रभा से कहा।





रणवीर एक बहादुर और निडर आदमी था। मेहनत मजदूरी करने से उसका शरीर फौलाद की तरह मजबूत हो गया था। वह जानता था कि दिलावर को रोकना कोई आसान काम नहीं है। इसमें जान का जोखिम है। मगर बात उसकी एकलौती बेटी की ज़िन्दगी की थी। वह हर जोखिम को उठाने के लिए तैयार था।





“मैं हवेली की तरफ जाता हूँ तब तक तुम सुखिया और बाकी गांव वालों को बुला कर ले आओ ,” रणवीर ने आगे कहा।





“नहीं मैं तुम्हें अकेले हवेली मैं जाने दूँगी ,” प्रभा को डर था कि वह कहीं रणवीर को न खो दे।





“हमारे पास और कोई रास्ता नहीं है। इस पूरे गांव में हमारी मदद सिर्फ सुखिया ही कर सकता है। तुम वक़्त ख़राब मत करो वर्ना हम पिंकी को खो देंगे ,” रणवीर ने प्रभा को समझाते हुए कहा।





पिंकी को खो देने की बात सुनकर प्रभा घबरा गई और फिर वह सुखिया के घर की तरफ दौड़ पड़ी। इधर रणवीर फिर से पिंकी के पीछे पीछे पुरानी हवेली की तरफ जाने लगा।





आज से 12 साल पहले दिलावर ने सुखिया के बेटे को इसी तरह हवेली में लेजा कर मार दिया था। उस दृश्य के बारे में सोच कर ही गांव वालों का मानो खून जम जाता था। सुखिया ने अपनी जान पर खेलकर अपने बेटे को बचाने की कोशिश की थी मगर वह दिलावर की ताकत के सामने न टिक सका। दिलावर तो वैसे भी एक खूनी दरिंदा था जो हर 12 साल बाद अपनी नींद से उठकर एक ख़ूनी खेल खेलता था। बिना किसी तैयारी के उसे रोक पाना नामुमकिन था। उसी दिन से सुखिया दिलावर के नींद से जागने का इंतज़ार कर रहा था।





भागते हुए प्रभा सुखिया के घर पर बहुत ही जल्दी पहुँच गई।





“सुखिया भैया ! अरे ओ सुखिया भैया जल्दी दरवाज़ा खोलो ,” सुखिया के घर के बाहर पहुँच कर प्रभा सुखिया को बुलाने लगी।





“चलो बहन। मैं समझ गया हूँ कि क्या हुआ हैं ,” सुखिया बन्दूक, चाकू, रस्सी और केरोसिन की कैन उठाए हुए बाहर आ गया। सुखिया को पता था कि आज दिलावर के जागने का दिन है। वह बस सूचना मिलने का इंतज़ार कर रहा था।





सुखिया ने गांव के ही चार पांच लोगों को और बुला लिया, जिनमे एक गांव का पुजारी भी था। फिर वह उन सबको अपनी जीप में बिठाकर पुरानी हवेली की तरफ निकल पड़ा।





दूसरी तरफ रणवीर भी पिंकी के पीछे भागता जा रहा था। पिंकी ऊँची ऊँची छलांगे मारते हुए पुरानी हवेली की तरफ तेज़ी से जा रही थी और थोड़ी देर बाद वह पुरानी हवेली के गेट तक पहुँच गयी।





गेट पर पहुँच कर पिंकी थोड़ी देर खड़ी होकर ज़ोर ज़ोर से हंसी और फिर गर्दन ऐंठ कर रणवीर की तरफ देखने लगी।





“अब इसे मुझ से कोई नहीं बचा सकता। अपनी जान बचानी है तो भाग जा रणवीर,” पिंकी ने मरदाना आवाज़ में कहा।





अब यह बिलकुल साफ़ हो चुका था पिंकी दिलावर के कब्ज़े में थी।





“दिलावर आज तू नहीं बचेगा। अपनी ख़ैर चाहता है तो मेरी बेटी को छोड़ दे,” रणवीर ने कहा।





अब पिंकी कोई मासूम बच्ची नहीं लग रही थी। उसकी आँखों में जैसे अंगारे जल रहे थे। लाल लाल आंखें, बड़े बड़े दांत अब वह पिंकी नहीं थी वह तो दिलावर था जिसने पिंकी पर कब्ज़ा किया हुआ था।





हंसती हुई भयावह पिंकी हवेली के गेट में प्रवेश कर गयी। रणवीर ने बिना कोई समय गंवाए भाग कर पिंकी के पैरों को पकड़ लिया। वह जानता था कि उसने पिंकी को छोड़ दिया तो फिर वह कभी वापस नहीं आएगी।





पिंकी रणवीर से अपना पैर छुड़ाने के लिए उसे झटकने लगी। मगर रणवीर ने पिंकी के पैर को कस कर पकड़ा हुआ था। आखिर में वह उसे ऐसे ही घसीटते हुए हवेली के अंदर जाने लगी। रणवीर के पैर पकड़ लेने से पिंकी की रफ़्तार तो कुछ कम हुई थी मगर वह अब भी आगे बढ़ती जा रही थी। जैसे जैसे पिंकी आगे भड़ती उसका रूप और विकराल होता जाता। मानो उसकी ताक़त में इज़ाफ़ा हो रहा हो।





अभी रणवीर पिंकी से जूझ ही रहा था कि सुखिया बाकि लोगों के साथ हवेली पर पहुँच गया। सुखिया को माजरा समझते देर न लगी। उसे अपने साथ लायी रस्सी का एक सिरा रणवीर की तरफ फेंका।





“रणवीर इस रस्सी से पिंकी का पैर बांध दो ” सुखिया ने रणवीर से कहा।





रणवीर ने जैसे ही पिंकी का पैर उस रस्सी से बाँधा पिंकी की आँखों से अंगारे फूटने लगे। ऐसा लग रहा था कि वह सब कुछ जला कर रख देगी।





देखते ही देखते रस्सी धू धू कर के जलने लगी।





इतने में पंडित जी अपनी पोजीशन में आ गए थे। उन्होंने मौका हाथ लगते ही पिंकी के चारों तरफ एक गोला बना दिया और फिर हाथ में गंगाजल लेकर कुछ मंत्र पड़ने लगे।





इतना सब देख कर दिलावर भी मामला समझ चुका था। इस से पहले कि पंडित जी पिंकी पर गंगाजल डाल कर अपना मंत्र पूरा करते पिंकी अचानक एकदम से नार्मल हो गयी और “पापा-पापा” चिल्लाने लगी।





जैसे ही पंडित जी ने गंगाजल पिंकी पर डाला तो गोले के चारों तरफ आग जलने लगी।





मगर दिलावर तो अब तक पिंकी के शरीर को छोड़ चुका था इसलिए उसे कुछ नहीं हुआ।





अभी पंडित जी पूरा मामला समझने की कोशिश ही कर रहे थे कि उनकी आँखें एकाएक लाल हो गयीं और उनमें से चिंगारी फूटने लगी।





“लगता है दिलावर ने पंडित जी को काबू कर लिया है ,” सुखिया ने कहा।





फिर अचानक ही तेज़ हवाएं चलने लगी और तूफानी बारिश शुरू हो गयी।





पंडित जी अब ज़ोर ज़ोर से हंसने लगे।





“अब तुम सब मरोगे। क्यों सुखिया अपने लड़के की मौत देखकर तेरा दिल नहीं भरा ,” हँसते हुए पंडित जी ने भयानक आवाज़ में कहा।





“तू अपनी फ़िक्र कर दिलावर ,” सुखिया।





और फिर सुखिया ने बिना कोई समय गंवाए एक और रस्सी उठा कर उस से पंडित जी को बांध दिया। इस काम में चार और लोगों ने सुखिया का साथ दिया।





दिलावर ने मगर रस्सी को ऐसे तोड़ दिया जैसे रेशम के धागे हों और उड़ता हुआ हवेली के अंदर चला गया। थोड़ी देर बाद हवेली में से पंडित जी का शरीर उड़ता हुआ आया और ज़ोर से वहीँ गिर पड़ा जहाँ उन्हें बाँधा गया था। यह बिलकुल ऐसा था जैसे किसी ने पंडित जी को ज़ोर से बाहर फेंका हो।





सुखिया ने चेक किया तो पंडित जी के प्राण पखेरू उड़ चुके थे।





फिर दिलावर अपने कंकाल रूप में उन लोगों के सामने आकर खड़ा हो गया। दिलावर के बाहर आते ही बारिश भी रुक गई, मनो अब कोई और बड़ी विपत्ति आनी हो ।





सुखिया तो जैसे यहीं चाहता था उसने अपनी बन्दूक की सारी गोलियां दिलावर पर उड़ेल दीं। दिलावर पर मगर इसका कोई फरक ही नहीं पड़ रहा था और उसने देखते ही देखते एक और आदमी की जान ले ली।





सुखिया को यह नागवार था। उसने इशारे से सभी आदमियों को अपने पीछे जाने को कहा और दिलवर के सामने दीवार बन के खड़ा हो गया। सुखिया अपने चाकू से दिलावर की हड्डिया तोड़ता मगर दिलवर की अपने आप नयी हड्डियां आ जातीं। काफी देर तक यही चलता रहा फिर अचानक दिलावर के कंकाल में हलचल होनी बंद हो गयी। रणजीत ने फ़ौरन ही उस कंकाल पर केरोसिन उड़ेल कर उसमें आग लगा दी। दिलावर का मृत कंकाल धूं धूं कर के जलने लगा। मगर दिलावर तो शायद पहले ही उस कंकाल को छोड़ चुका था।





सारी रात दिलावर से लड़ते लड़ते किसी को वक़्त का अंदाज़ा नहीं रहा। सूरज की पहली किरण पड़ते ही दिलावर अपनी १२ साल की नींद में चला गया था।





रणवीर खुश था कि उसकी बेटी की जान बच गई और सुखिया दुखी था क्योंकि वह समझ गया था कि उसे अपना बदला लेने के लिए १२ साल और इंतज़ार करना पड़ेगा।









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Published on June 19, 2020 08:36

प्रकाशित पुस्तकें

1. घर वापसी









2. मुर्गों की चोरी का किस्सा









3. सोशल नेटवर्क – एक सामाजिक जाल









4.अपहरण
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Published on June 19, 2020 08:36