गज़लें



१कभी बरगद भी मेरी छाँव में ढल जाया करेवक्त बुरा हो तो मर्जी से बदल जाया करे
हमसफर हो कि जो दिल को संंभाले रखेदिल हो ऐसा कि टूटे तो संभल जाया करे
आमदनी हो कि कभी पेट न खाली सोएपेट ऐसा हो कि पानी से बहल जाया करे
रात आए घनी, नींदों के परिंदे लेकरनींद ऐसी कि हर ख्वाब मचल जाया करे



मेरी परछाईं को साया समझ लिया तुमनेहमने क्या चाहा था, क्या समझ लिया तुमने
भरी गागर से इक सिसकी छलक गई होगीया मेरी आह को शिकवा समझ लिया तुमने
लबों की भीगती फिसलन पे गिर गई होगीमेरी जिस बात को वादा समझ लिया तुमने
वो आधा-आधा सही, था मगर दोनों तरफएक किस्सा जो, इकतरफा समझ लिया तुमने
मैं मुस्कुराऊँ इरादतन, ये जरूरी तो नहींजरा सी बात को मसला समझ लिया तुमने
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Published on December 18, 2017 04:14
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